संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद विपक्ष में बेचैनी और सुप्रीम कोर्ट में याचिका के अलावा यदि सबसे ज्यादा कहीं हलचल है तो वो है नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में. पार्टी में सवाल पूछे जा रहे हैं कि इस बिल को समर्थन क्यों दिया? अभी तक पांच नेता इस्तीफा दे चुके हैं जिसमें चार मुस्लिम हैं. खबर है कि अभी कुछ कतार में हैं और जल्दी ही बागी कुछ बड़ा ऐलान कर सकते हैं.
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा का चुनाव है लिहाजा सियासी लिहाज से जरखेज इस सूबे में राजनीतिक हलचल है. वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद ये हलचल और तेज हो गई है. एनडीए के घटक दल जनता दल यू और उसके सबसे बड़े नेता सीएम नीतीश कुमार पर आरोप लग रहे हैं कि वो अब धर्मनिरपेक्ष नहीं रहे. उन्होंने मोदी सरकार का इस बिल पर समर्थन क्यों दिया. इसी नाराजगी में जेडीयू के पांच नेताओं ने अपना इस्तीफा दे दिया है.
जिन नेताओं ने अभी तक इस्तीफा दिया है उसमें अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मोहम्मद शाहनवाज मलिक, प्रदेश महासचिव सिए मो. तबरेज सिद्दीकी अलीग, पार्टी सदस्य मो. दिलशान राईन और पूर्व प्रत्याशी मोहम्मद कासिम अंसारी शामिल हैं.. इन नेताओं ने आरोप लगाया कि जेडीयू ने मुस्लिम समुदाय का भरोसा तोड़ा है और यह कदम सेक्युलर छवि के खिलाफ है. इस्तीफा देने वालों में नदीम अख्तर भी शामिल हैं.
राजू नैयर ने अपने इस्तीफे में लिखा वक्फ संशोधन विधेयक के लोकसभा में पारित होने और उसका समर्थन किए जाने के बाद मैं जेडीयू से इस्तीफा देता हूं। मैं जेडीयू की ओर से मुसलमानों पर अत्याचार करने वाले इस काले कानून के पक्ष में मतदान करने से बहुत आहत हूं. उन्होंने कहा- ‘मैं जेडीयू की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं और मैं सीएम नीतीश कुमार से आग्रह करता हूं कि मुझे सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करें. इसी तरह शाहनवाज़ मलिक ने नीतीश कुमार को भेजे पत्र में लिखा है कि हमारे जैसे लाखों भारतीय मुसलमानों का दृढ़ विश्वास था कि आप एक सच्ची धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के पक्षधर है लेकिन वो विश्वास अब टूट गया है.
पूर्व एमएलसी मौलाना गुलाम रसूल बलियावी और एमएलएसी गुलाम गौस ने भी विरोध जताया है. यद्यपि इन्होंने अभी पार्टी नहीं छोड़ी है लेकिन कहा है कि इस बिल के जरिए वक्फ बोर्ड की जमीन छीनने की कोशिश की जा रही है. नतीजा यह होगा कि मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए चल रही योजनाओं पर कैंची चल जाएगी. जेडीयू ने इन इस्तीफों को कोई खास महत्व नहीं दिया है.
पार्टी की ओर से कहा गया कि कासिम अंसारी पहले ही पार्टी से निष्कासित कर दिये गये थे और वो जेडीयू के सदस्य नहीं हैं. उन्होंने कभी जेडीयू के टिकट पर चुनाव भी नहीं लड़ा.बेशक पार्टी इस विरोध को ज्यादा तवज्जों नहीं दे रही है लेकिन बगावत रोकने के लिए पार्टी नेता सक्रिय हो गये हैं. शीर्ष नेतृत्व नहीं चाहता कि जिस सीएम ने सबसे ज्यादा मुस्लिमों के लिए काम किया उस पर चुनावी साल में मुस्लिम विरोधी होने का दाग लगे और चुनाव में नुकसान उठाना पड़े.
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