गांधीनगर: जैसा की हम सभी लोग जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात की बागडोर 13 साल संभालने के बाद इस मुकाम पर पहुँचे हैं, बतौर एक कामयाब प्रधानमंत्री उनकी शख्सियत में गुजरात की मिट्टी की बड़ी अहमियत है, बतौर राज्य गुजरात ने ही उन्हें प्रशासन की बारीकियों को समझने का मौका दिया, इसी राज्य […]
गांधीनगर: जैसा की हम सभी लोग जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात की बागडोर 13 साल संभालने के बाद इस मुकाम पर पहुँचे हैं, बतौर एक कामयाब प्रधानमंत्री उनकी शख्सियत में गुजरात की मिट्टी की बड़ी अहमियत है, बतौर राज्य गुजरात ने ही उन्हें प्रशासन की बारीकियों को समझने का मौका दिया, इसी राज्य की बागडोर संभालने के दौरान उनके “गुजरात मॉडल” ने पूरे भारत में राजनीति की एक नई दिशा तय की। आज 2022 में एक बार फिर उसी मिट्टी पर सियासत की एक नई इबारत लिखी जा रही है, जिसमें कुछ और नए खिलाड़ी जैसे कि आम आदमी पार्टी और असदउद्दीन की ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन जैसी ग़ैर गुजरात की पार्टियां भी अपना दमखम आज़मांएगी।
ऐसे हालात में हिंदुस्तान की सियासत एक बार फिर भारत के चाणक्य के हुनर को आज़माना चाहती है कि कैसे दो दशकों से राज्य की हुकूमत पर काबिज़ होने के बावजूद वो जनता को भाजपा में भरोसा करने के लिए प्रेरित करते हैं, गुजरात की हैसियत नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए एक राज्य से बढ़कर है, इसे हिंदुत्व की प्रयोगशाला के नाम से जाना जाता है।
2022 गुजरात विधानसभा के चुनाव का प्रत्यक्ष रुप असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर देखने को मिलेगा, ऐसे में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और एआई.एम.आई.एम. के लोकलुभावन वादों और सियासी सौगातों के बीच क्या भाजपा अपना राजनैतिक क़िला बचा पाएगी? क्या पूरा गुजरात चुनाव त्रिकोणीय तो नहीं हो जाएगा? क्या भाजपा लोगों की उम्मीदों से इतर 99 का आकड़ा पार कर इससे ज़्यादा सीटों पर कमल खिलाने में कामयाब हो पाएगी?
इस बार सत्ता के साथ-साथ विपक्ष की कुर्सी के लिए भी बड़ा पेंच फ़ंस गया है, जिस तरह से “आप” इस राजनैतिक उठापटक में ताल ठोक रही है उससे ये बात बिलकुल साफ़ है कि अगर वो अपनी उम्मीदों के मुताबिक मतदाताओं के बीच पैठ बनाने में कामयाब रही तो वह गुजरात के पूरे सियासी समीकरण को नया रंग और रुप दे देगा।
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