महाभारत के युद्ध में कोरवों के साथ होते हुए भी पांडव पक्ष में थे ये 4 योद्धा, जानिए क्या है सच

नई दिल्ली: महाभारत की महान गाथा से तो आप सब भली भांति परिचित होंगे। इस महान गाथा में कई वीर योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया है और वीरगति को प्राप्त हुए हैं। इस गाथा में दो परिवारों में हुए आपसी मतभेद के चलते जो युद्ध हुआ उसको सारा संसार अभी तक याद करता है, परंतु क्या आपको पता है कि इस युद्ध में लड़ने वाले कुछ महान योद्धा ऐसे भी थे जो दूसरे पक्ष ने युद्ध लड़ना चाहते थे परंतु अपने कर्तव्य को लेकर वह उनके खिलाफ लड़ रहे थे जिनके लिए वो आने ज्यादा सहयोग में थे ? जी हां महाभारत के समय कुछ ऐसे योद्धा भी थे जो कोरवों के साथ होते हुए भी पांडव पक्ष में थे। आइए जानते हैं उनके बारे ने विस्तार से?

1. युयुत्सु

युयुत्सु, कौरवों के परिवार का सदस्य होने के बावजूद, पांडवों के प्रति अपनी निष्ठा को लेकर प्रसिद्ध हैं। वह भीष्म पितामह के पौत्र और कौरवों के मामा थे। महाभारत के युद्ध में, उन्होंने कौरवों के साथ मिलकर लड़ाई की लेकिन पांडवों की सच्चाई और धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा ने उन्हें हमेशा पांडवों के पक्ष में रखा। युयुत्सु ने युद्ध के दौरान अपनी भूमिका निभाई, लेकिन पांडवों के प्रति उनके गहरे लगाव ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया।

2. कृतवर्मा

कृतवर्मा भी कौरवों की ओर से लड़ने वाले प्रमुख और सबसे ताकतवर योद्धा में से एक थे। वह एक अद्भुत और वीर योद्धा थे जिन्होंने दुर्योधन के लिए कई युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, कृतवर्मा का पांडवों के प्रति गहरा सम्मान था। युद्ध के दौरान उन्होंने कई बार पांडवों को चेतावनी दी और अपनी तरफ से कुछ कार्य किए जो उनके पक्ष में भी सहायक साबित हुए।

3. भीष्म पितामह

भीष्म पितामह, जिनका नाम महाभारत के युद्ध में प्रमुखता से लिया जाता है, वे कोरवों के साथ युद्ध कर रहे थे, लेकिन उनकी भूमिका भी बहुत पेचीदा थी। भीष्म पितामह ने अपनी वचनबद्धता के कारण कोरवों की ओर से युद्ध किया, हालांकि वे पांडवों के प्रति अपनी अपार स्नेह और आशीर्वाद को भी दर्शाते थे। उन्होंने पांडवों के साथ संघर्ष के बावजूद उन्हें सलाह दी और युद्ध के दौरान कई बार उनकी मदद की। भीष्म का आदर्श और धर्मनिष्ठा इस द्वंद्व युद्ध में एक महत्वपूर्ण कारक था।

4. द्रोणाचार्य

द्रोणाचार्य, जो एक प्रमुख गुरु और योद्धा थे, ने कोरवों की ओर से युद्ध किया, लेकिन उनकी भावनात्मक स्थिति भी जटिल थी। द्रोणाचार्य ने अपने शिष्य अर्जुन को युद्ध कला में प्रशिक्षित किया था और उनका संबंध पांडवों से बहुत गहरा था। द्रोणाचार्य की स्थिति इस युद्ध में उनके व्यक्तिगत संबंधों और धर्म के प्रति उनके दायित्व की वजह से बहुत कठिन थी। युद्ध के दौरान उनकी निष्ठा को लेकर कई बार संदेह उत्पन्न हुआ, लेकिन उन्होंने अंततः कोरवों के पक्ष में युद्ध किया।

क्या है इसका निष्कर्ष

इन योद्धाओं का पांडवों के पक्ष में आना महाभारत के युद्ध के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। उनके निर्णय और निष्ठा ने युद्ध के परिणाम को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन योद्धाओं की कथाएँ आज भी हमें सिखाती हैं कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना सबसे महत्वपूर्ण है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों। महाभारत का युद्ध न केवल एक भयानक संघर्ष था, बल्कि इसमें कई ऐसे पात्र भी शामिल थे जिनकी भूमिका जटिल और द्वंद्वात्मक थी। भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, और शकुनि जैसे योद्धा जो कोरवों के साथ युद्ध में शामिल हुए, वे पांडवों के प्रति अपने व्यक्तिगत संबंधों और भावनाओं से भी जुड़े हुए थे। यह तथ्य महाभारत के युद्ध की गहराई और जटिलता को दर्शाता है और हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे व्यक्तिगत और धर्मिक दायित्व युद्ध के मैदान में भी जटिलताएँ पैदा कर सकते हैं।

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