गयासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्म ने उन्हें वर दिया था कि उनकी मृत्यु संसार में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों नहीं होगी लेकिन वर मिलते ही गयासुर अत्याचारी हो गया. इसके बाद गयासुर भगवान नारायण को खोजने लगा. जब नारायण नहीं मिले तो गयासुर उनका कमलासन लेकर उड़ने लगा. जिसके बाद गयासुर और नारायण में युद्ध हुआ. जिस जगह भगवान ने गयासुर को रोका वो जगह गया के नाम से प्रसिद्ध हो गई.
गया. गयासुर की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्म ने उन्हें वर दिया था कि उनकी मृत्यु संसार में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों नहीं होगी लेकिन वर मिलते ही गयासुर अत्याचारी हो गया. इसके बाद गयासुर भगवान नारायण को खोजने लगा. जब नारायण नहीं मिले तो गयासुर उनका कमलासन लेकर उड़ने लगा. जिसके बाद गयासुर और नारायण में युद्ध हुआ. जिस जगह भगवान ने गयासुर को रोका वो जगह गया के नाम से प्रसिद्ध हो गई.
पिंडदान करने का महत्व
गयासुर को भगवान नारायण ने एक वरदान दिया था. वरदान में गयासुर ने मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन से पाप मुक्त हो जाएं. उसे ये वरदान तो मिला, लेकिन इस वरदान से लोक प्रलोक में रहने वाले सभी असुर भी स्वर्ग पहुंचने लगे जिससे सभी देवता परेशान हो गए.
इससे बचने के लिए नारायण ने ब्रह्मदेव से यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग की जिसके बाद ब्रहम देव ने गयासुर से उसका शऱीर मांग लिया. गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया. गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और उसने देवताओं से फिर वरदान मांगा कि ये स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे. जो भी लोग यहां पर पिंडदान करें, उनके पितरों को मुक्ति मिले. यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने यानी पिंडदान के लिए गया आते हैं.
धर्मचक्र में देखिए भगवान विष्णु के मंदिर और गयासुर राक्षस के महत्व को.