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क्यों भीड़ देखती रही तमाशा और साक्षी पर साहिल चलाता रहा धारदार चाकू !

नई दिल्ली: दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में साक्षी नाम की एक नाबालिग बच्ची की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस वारदात को अंजाम देने वाले लड़के का नाम साहिल है। आरोपी को दिल्ली पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से गिरफ्तार किया था। बताया जा रहा है कि लड़की का साहिल से झगड़ा हुआ था। इस बात से वह इतना भड़क गया कि उसने बच्ची पर चाकू और पत्थर से ताबड़तोड़ हमला कर दिया।

 

➨ बेरहमी से किया बच्ची का मर्डर

हैरान करने वाली बात यह है कि जिस वक़्त वह बच्ची पर चाकू से वार कर रहा था। उस वक़्त वहां पर भीड़ भी मौजूद थी। लेकिन इतनी भीड़ होने के बाद भी किसी ने एक आवाज़ तक नहीं उठाई। ऐसा अक्सर सुनने को मिल जाता है कि भीड़ हमेशा तमाशा देखती रह जाती है। इतने ज़्यादा लोग होने के बाद भी लोग तमाशबीन बनकर सब कुछ देखते रह जाते हैं और उनकी आंखों के सामने बड़े बड़े अपराध हो जाते हैं।

 

➨ क्यों होता है ऐसे?

ऐसे में आपके मन में भी यह सवाल आया होगा कि आखिर ऐसा क्यों होता है? तो आपको बता दें कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण होता है। जी हां, आपको बता दें, Psychology में इसे बाईस्टैंडर इफेक्ट (Bystander Effect) कहते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या होता है बाईस्टैंडर इफेक्ट (Bystander Effect)? इस खबर में हम आपको बताने की कोशिश करते हैं।

➨ अकेला शख्स ज़्यादा मददगार

यह Psychology Theory की बताती है कि हर बार जब भीड़ कोई दुर्घटना, हत्या या हमला देखती है, तो उनकी मदद करने की संभावना कम हो जाती है। वहीं दूसरी ओर यदि कोई अकेला व्यक्ति किसी को मुसीबत में देखता है तो उम्मीद होती है कि वो परेशान आदमी की मदद करेगा। ऐसा हम नहीं कहते बल्कि ऐसा रिसर्च कहती है कि जब भी कोई दुर्घटना होती है और वहां भीड़ इकट्ठी हो जाती है, तो मदद मिलने की संभावना 60 फीसदी कम हो जाती है।

 

वहीं सिर्फ 40% लोग मदद के बारे में सोचते तो हैं, लेकिन कर नहीं पाते। इधर, दूसरी ओर अगर कोई अकेला व्यक्ति किसी को मुसीबत में देखता है तो वह निडरता से उसकी मदद के लिए आगे आता है।

 

➨ भीड़ होती है ज़्यादा डरपोक और कमजोर

पहली वजह तो यह है कि भीड़ में कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता। भीड़ हमेशा किसी दूसरे शख्स से इस चीज़ की उम्मीद करती है कोई पहला रिएक्शन दे। ऐसे में सभी एक-दूसरे की तरफ देखते रह जाते हैं। दूसरा कारण यह है कि लोग दूसरों के पर्सनल मामले में पड़ने से बचते हैं। लोगों के मन में इस बात का डर रहता है कि आवाज़ उठा कर वो अपने लिए मुसीबत मोल ले लेंगे।

साथ ही लोगों को यह डर भी सताता है कि दूसरों के मामले में पड़ने से हमारी जान को भी खतरा हो सकता है। इसी वजह से लोग चुप रहते है। इसके अलावा भीड़ में मौजूद हर इंसान यह सोचता रह जाता है कि जब बाकी लोग कुछ नहीं बोल रहे तो वो सही होगा। इतने लोग जब चुप है तो मुझे भी चुप रहना चाहिए।

 

 

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Amisha Singh

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