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शंघाई में दीपक चौरसिया की महाबहस, क्या चीन को पीछे छोड़ सकता है भारत ?

भारत में बहुत से लोगों को ये जानकार हैरानी हो सकती है कि शंघाई की जगमगाती तस्वीर सिर्फ 15 साल में बनी. चीन की सरकार और शंघाई म्यूनिसिपल गवर्नमेंट ने विकास की योजनाएं बनाईं, जिन्हें शंघाई के लोगों की मदद से अंज़ाम तक पहुंचाया गया. क्या मुंबई को शंघाई जैसा बना पाना संभव है ?

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  • September 8, 2016 5:30 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
शंघाई (चीन). 2001 में चीन विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना और उसके बाद के 15 साल में चीन के विकास की रफ्तार देखकर दुनिया दंग है. चाहे आर्थिक विकास हो, औद्योगिक विकास या फिर नगरीय सुविधाओं का मामला, चीन आज हर क्षेत्र में आगे है. हालांकि पिछले एक साल से चीन की आर्थिक विकास की रफ्तार सुस्त हुई है और भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है. लिहाज़ा हर भारतीय के मन में एक ही सवाल है कि क्या चीन को पीछे छोड़ सकता है भारत ?
 
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 जी-20 शिखर सम्मेलन की कवरेज के लिए चीन गए इंडिया न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ दीपक चौरसिया ने इसी सवाल पर चीन में बसे भारतीय मूल के उद्यमियों, छात्रों और इंडियन एसोसिएशन के सदस्यों के साथ बड़ी बहस की. 10-15 साल से चीन में बसे भारतीय मूल के लोगों से ये जानने की कोशिश की गई कि आखिर चीन ने इतनी तरक्की कैसे की?
 
 
टुनाइट विद दीपक चौरसिया का ये स्पेशल शो चीन के सबसे विकसित शहर शंघाई के रिवर फ्रंट पर हुआ. इस शो में शंघाई में कारोबार कर रहे अमित वायकर, परमार ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज़ के नीलेश परमार, डायमंड ग्रुप के अभिषेक गोलचा, माइक्रोसॉफ्ट के इंजीनियर राहुल बागड़े, टेक महिंद्रा के अधिकारी और शंघाई में इंडियन एसोसिएशन से जुड़े मुकेश शर्मा, चीन 15 साल से अपना बिजनेस कर रहे तपन, बिजनेस मैनेजमेंट के छात्र मुदित, चीन की मोबाइल कंपनी में अधिकारी रवि बोस और इंडियन एसोसिएशन के फणी किरण ने हिस्सा लिया. 
 
 
टुनाइट विद दीपक चौरसिया के शंघाई स्पेशल महाबहस में शामिल सभी लोग इस बात पर एकमत थे कि चीन के विकास की सबसे बड़ी वजह ये है कि वहां शिक्षा पर खास ज़ोर दिया गया है. साथ ही चीन में विकास की योजनाओं में नौकरशाही रोड़े नहीं अटकाती. एक पार्टी की सत्ता होने के चलते चीन में विकास के नाम पर राजनीतिक रोटियां भी नहीं सेंकी जातीं. 
 
 
महाबहस में शामिल अप्रवासी भारतीयों का मानना था कि भारत को चीन से होड़ करने की ज़रूरत नहीं है. भारत सरकार अगर अपनी मौजूदा नीतियों पर ढंग से अमल करे, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत भी चीन की बराबरी कर सकता है. 
 
 
महाबहस में एक बड़ा मुद्दा भारत और चीन के रिश्तों को लेकर भी था. ज्यादातर भारतीय अब तक 1962 की जंग भूल नहीं पाए हैं. शो में शामिल इंडियन एसोसिएशन के लोगों का कहना था कि चीन की नई पीढ़ी 1962 की कड़वाहट से बाहर निकल चुकी है. चीन के लोगों और वहां की सरकार के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता विकास है और भारत उनकी नज़र में एक महत्वपूर्ण बिजनेस पार्टनर है. बहस में शामिल लोगों ने बताया कि चीन तो अमेरिका से कूटनीतिक कड़वाहट को भी अपने कारोबारी रिश्तों में आड़े नहीं आने देता.
 
 
शंघाई रिवरफ्रंट पर जुटे लोग इस बात से सहमत थे कि सुरक्षा और अपराध को लेकर जो खबरें मीडिया में आती हैं, उससे भारत की छवि बिगड़ती है. इसी वजह से चीन के पर्यटक भारत आने से कतराते हैं. बहस में शामिल लोगों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि चाहें भारत की छवि सुधारनी हो या फिर चीन की तरह साफ-सुथरे शहरों का निर्माण करना हो, अकेले सरकार की कोशिशों से सफलता नहीं मिलेगी. बेशक भारत की तरह चीन में लोकतंत्र नहीं है, फिर भी भारतीय लोगों को चीन के नागरिकों की तरह देश के निर्माण में अपनी जिम्मेदारी तो निभानी ही चाहिए.

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