इतनी महंगाई के बाद भी कैसे 5 रूपए में बिक रहा है Parle G?

नई दिल्ली : महंगाई आज के समय में आम आदमी के सर चढ़कर तांडव कर रही है. महंगाई इस कदर बढ़ रही है कि अब आटा चावल से लेकर रसोई का हर सामान महंगा हो गया है. लेकिन इस महंगाई में भी अगर कुछ नहीं बदला है तो भारतीयों के लोकप्रिय बिस्किट पार्ले जी के […]

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इतनी महंगाई के बाद भी कैसे 5 रूपए में बिक रहा है Parle G?

Riya Kumari

  • August 9, 2022 3:18 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली : महंगाई आज के समय में आम आदमी के सर चढ़कर तांडव कर रही है. महंगाई इस कदर बढ़ रही है कि अब आटा चावल से लेकर रसोई का हर सामान महंगा हो गया है. लेकिन इस महंगाई में भी अगर कुछ नहीं बदला है तो भारतीयों के लोकप्रिय बिस्किट पार्ले जी के दाम. आज भी आपको ये बिस्किट केवल 5 रूपए में मिल जाएगा. इसके पीछे का क्या गणित है आज हम आपको समझाने जा रहे हैं.

चार रुपए भी थी कीमत 

पारले-जी (Parle-G) बिस्किट आज भी वैसे ही स्वाद रखता है जैसे वो हमारे माता-पिता और दादा-दादी के समय में रखता था. भारत में ये सिर्फ एक बिस्किट का ब्रांड नहीं है इसे हर घर में पीढ़ी दर पीढ़ी खाया जाता है. इस बिस्किट ब्रांड का ज़िक्र आपको भी आपके बचपन की सैर करवा देता होगा. आज तक इसके स्वाद और दाम में कोई बी बदलाव नहीं आया है. एक समय था जब इस बिस्किट की कीमत चार रुपए भी थी. अब सवाल ये है कि लगातार बढ़ती महंगाई के बीच भी इसके दाम वैसे के वैसे किस तरह से टिके हुए हैं.

25 साल तक चार रुपए थी कीमत

25 साल तक पारले-जी की कीमत केवल चार रुपए ही थी. स्विगी के डिजाइन डायरेक्टर सप्तर्षि प्रकाश ने पार्ले जी के दाम का पूरा गणित समझाया है. उन्होंने इस बात का ज़िक्र अपने लिंक्डइन (Linkedin) अकाउंट पर किया है. उन्होंने लिखा, ‘साल 1994 में पारले-जी बिस्किट ब्रांड की शुरुआत हुई थी जब इसके एक छोटे पैकेट की कीमत चार रुपये हुआ करती थी. कई साल बाद भी इसके दाम में एक रुपये का ही इजाफा हुआ और पैकेट की कीमत 5 रुपये हो गई. वह बताते हैं कि आखिर कैसे पार्ले जी ने भारतीय बाजार में टिकने के लिए जबरदस्त मनोवैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल किया.

ये है गणित

पार्ले जी के मनोवैज्ञानिक तरीके के बारे में बताते हुए प्रकाश लिखते हैं, ‘जब भी मैं छोटा पैकेट कहता हूं, तो आपके दिमाग में भी आता होगा कि ऐसा पैकेट जो आसानी से आपके हाथ में फिट आए. इस छोटे से पैकेट के भीतर मुट्ठी भर बिस्किट होते हैं. पारले ने इस तरीके को समझा. इसलिए उसने कीमतों में इजाफा नहीं किया बल्कि लोगों के छोटा पैकेट की धारणा को ज़िंदा रखा. फिर धीरे-धीरे इसके साइज कम करता गया. समय के साथ छोटे पैकेट का साइज छोटा हो गया, लेकिन कीमतें वैसी ही रहीं’. वह आगे लिखते हैं, ‘पहले पारले-जी का छोटा पैकेट 100 ग्राम का था जिसे कुछ साल बाद घटाकर 92.5 ग्राम कर दिया गया. समय के साथ इसे 88 ग्राम और आज पांच रुपये में मिल रहा पारले-जी का छोटा पैकेट 55 ग्राम वजन का आता है.’

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