नई दिल्ली, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत 80 रुपये के एकदम करीब पहुंचने से कच्चे तेल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों तक का आयात, विदेशी शिक्षा और विदेश यात्रा महंगी होने के साथ ही अब महंगाई के और ज्यादा बढ़ने की आशंका है. रुपये की कीमत में गिरावट का प्राथमिक और तात्कालिक प्रभाव आयातकों पर पड़ता है क्योंकि उन्हें कम मात्रा के लिए भी ज्यादा कीमत का भुगतान करना पड़ता है, वहीं इसके इतर यह निर्यातकों के लिए एक वरदान होता है क्योंकि उन्हें डॉलर के बदले ज्यादा रुपये मिलते हैं.
बृहस्पतिवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.99 रुपये के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था जबकि शुक्रवार को रुपया 8 पैसे की मजबूती के साथ 79.91 प्रति डॉलर के स्तर पर जाकर बंद हुआ था. इसमें ये भी गौर करने लायक है कि वित्त मंत्रालय की बृहस्पतिवार को जारी एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि महंगा आयात और कम माल निर्यात के कारण चालू वित्त वर्ष में भारत का चालु खाता अभी बिगड़ सकता है.
आइए, आपको बताते हैं कि रुपये में बड़ी गिरावट आने से खर्च पर किस तरह से असर पड़ सकता है:
आयातित वस्तुओं के भुगतान के लिए आयातकों को अमेरिकी डॉलर खरीदने की आवश्यकता होती है, वहीं रुपये में गिरावट आने से सामानों का आयात करना महंगा हो जाएगा और अब सिर्फ तेल ही नहीं बल्कि मोबाइल फोन, कुछ कारें और अन्य उपकरणों के भी महंगे होने की संभावना है.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का मतलब होगा कि विदेशी शिक्षा अब पहले से ज्यादा महंगी हो जाएगी और अब न केवल विदेशी संस्थानों द्वारा शुल्क के रूप में वसूले जाने वाले प्रत्येक डॉलर के लिए अधिक रुपये खर्च करने की जरूरत पड़ेगी, बल्कि रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद एजुकेशन लोन भी महंगा हो गया है.
दुनिया भर में कोरोना मामलों में गिरावट आने के बाद विदेश यात्राएं बढ़ रही हैं, लेकिन अब ये और महंगे हो गए हैं.
प्रवासी भारतीय (एनआरआई) जो पैसा अपने घर भेजते हैं, वे रुपये के मूल्य में अब और ज्यादा भेजने लगेंगे.
ताजा आंकड़ों के मुताबिक जून महीने में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले देश का आयात 57.55 प्रतिशत बढ़कर 66.31 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है, वहीं जून 2022 में वस्तुओं का व्यापार घाटा 26.18 अरब डॉलर हो गया, जो जून 2021 के 9.60 अरब डॉलर से 172.72 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शा रहा था. जून में कच्चे तेल का आयात लगभग दोगुना बढ़कर 21.3 अरब डॉलर हो गया है.
मौजूदा परिदृश्य में इसकी बड़े पैमाने पर उम्मीद की जा रही है कि रिजर्व बैंक प्रमुख ब्याज दरों में लगातार तीसरी बार वृद्धि कर सकता है, फिलहाल खुदरा मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है, जो रिजर्व बैंक के छह प्रतिशत के सुविधाजनक स्तर से बहुत ज्यादा है.
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