RBI MPC Highlights: बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मॉनिटरी पॉलिसी की लगातार दूसरी बैठक की है. इस बैठक के दौरान ब्याज दरों में 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की गई है. आरबीआई ने इस पॉलिसी के दौरान 6 नई पहलें की हैं जो कि बैंकिंग नियमन, फिनटेक और भुगतान प्रणाली से संबंधित हैं.
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि इन उपायों का उद्देश्य भारत की वित्तीय प्रणाली को अधिक समावेशी, पारदर्शी और आधुनिक बनाना है. अब तक बैंकों या वित्तीय संस्थाओं के खराब कर्ज को निपटाने के लिए मुख्यतः ARC (Asset Reconstruction Company) के रास्ते का उपयोग किया जाता है. जो कि अब SARFAESI Act, 2002 के अंतर्गत कार्य करेगा है. लेकिन अब आरबीआई ने एक और नया विकल्प पेश किया है जो मार्केट-बेस्ड सिक्योरिटाइजेशन मैकेनिज्म है.
इसका मतलब है कि अब बैंकों के पास यह विकल्प होगा कि वे अपने स्ट्रेस्ड लोन को एक ऐसे ढांचे के तहत निवेशकों को बेच सकते हैं जो खुले बाज़ार में काम करता हो. इससे NPA समाधान के लिए प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी. साथ ही पारदर्शिता आएगी और निवेशकों के लिए भी अवसर खुलेंगे. इससे बैंक बैलेंस शीट को सुधारने में अधिक सक्षमता भी बढ़गी.
वर्तमान में को-लेंडिंग की सुविधा केवल बैंकों और NBFCs के बीच ही उपलब्ध है और वो भी सिर्फ प्राथमिकता क्षेत्र के ऋणों तक सीमित है. जैसे कृषि, शिक्षा, एमएसएमई आदि में.है. RBI अब इस व्यवस्था का दायरा भी बढ़ा रही है. भविष्य में सभी रेगुलेटेड संस्थाएं चाहे वे बैंक हों, एनबीएफसी, या फिर माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं या अन्य को लेंडिंग में भी शामिल हो सकेंगी. यह सुविधा अब सभी प्रकार के ऋणों पर लागू होगी. यह न सिर्फ प्राथमिकता क्षेत्र बल्कि गैर-प्राथमिकताप्राथमिकता क्षेत्र पर भी है.
गोल्ड लोन यानी कि सोने के आभूषण और गहनों को गिरवी रखकर लिए जाने वाले ऋण, भारत में एक बेहद आम और लोकप्रिय कर्ज सुविधा है. अभी तक इस पर विभिन्न संस्थाओं के लिए अलग-अलग दिशा-निर्देश हैं. आरबीआई अब इस पूरे क्षेत्र को एक सुसंगत और समेकित रेगुलेशन के तहत लाना चाहता है. गोल्ड लोन से संबंधित प्रूडेंशियल नॉर्म्स (सावधानी से जुड़ी शर्तें) और कस्टमर हैंडलिंग के नियम जारी करेगा. इस कारण से बैंकों और गोल्ड लोन के संचालन में एकरूपता आएगी, ग्राहकों के हितों की रक्षा होगी और अनावश्यक जोखिमों से भी बचा जा सकेगा.
वर्तमान में व्यक्ति से व्यापारी (P2M) UPI लेन-देन की सीमा को RBI तय करेगा. अब RBI ने प्रस्ताव रखा है कि इस लेन-देन की सीमा को तय करने की जिम्मेदारी NPCI (National Payments Corporation of India) दी जाए. NPCI बैंकों और अन्य स्टेकहोल्डर्स से विचार-विमर्श कर फैसला लेगा. इसका लाभ यह होगा कि ट्रांजैक्शन लिमिट्स को ज़रूरत के मुताबिक और तेज़ी से एडजस्ट किया जा सकेगा. जिससे डिजिटल पेमेंट की पहुंच और सुविधा भी बढ़ेती चली जाएगी.
विनियामक सैंडबॉक्स एक ऐसा प्लेटफॉर्म होता है, जो कि आरबीआई नई फिनटेक कंपनियों को सीमित दायरे में अपने प्रोडक्ट्स और सर्विसेज़ का परीक्षण करने की अनुमति भी देता है. यह सैंडबॉक्स थीम-बेस्ड होता था, जैसे—डिजिटल लोन, पेमेंट्स आदि. लेकिन अब आरबीआई ने इसे थीम-न्यूट्रल और ऑन-टैप घोषित कर दिया है. यानी अब किसी भी क्षेत्र में इनोवेशन को कभी भी (on-demand) प्रस्तावित किया जा सकता है. इससे स्टार्टअप्स और फिनटेक कंपनियों को नई तकनीकों को टेस्ट करने का तेज़ और लचीला मंच भी प्राप्त होगा.
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