क्या भारत में भी गुप्त रुप से पांव पसार रही है वैश्विक आर्थिक मंदी?, सामान्य खाने-पीने की चीजें जीएसटी के दायरे में

 

वैश्विक आर्थिक संकट: अमेरिका ने अपने ब्याज दरों में खास परिवर्तन किया। दुसरे देश की तुलना में अमेरिका की अर्थव्यव्यस्था को स्थायी और मजबूत माना जाता है। दुनियां के देशों के केन्द्रीय बैंकों ने इकोनॉमिक प्रोटेक्शनिज्म को ध्यान में रखकर, ब्याद दरों में बदलाव शुरू किए है. इसके असर से भारत में निवेश करने वाले अंतरराष्ट्रीय निवेशकों ने अपनी पूंजी लगाना बंद कर दिया है.

क्या भारत में गुप्त रुप से पांव पसार रही है वैश्विक आर्थिक मंदी?

भारत के कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दीपावली के बाद से ही देश में आर्थिक मंदी का असर देखने को मिल सकता है। अर्थशास्त्री और प्राक्टर एंड गैंबेल के पूर्व सीईओ और प्रबंध निदेशक (स्ट्रेटजिक) गुरुचरण दास का मानना है कि पूरी दुनिया में आर्थिक उथल-पुथल मची है।

खाने-पीने की चीजों पर टैक्स लगाना जख्म पर नमक छिड़कना जैसा ही है।

सारथी आचार्य के अनुसार वैश्विक आर्थिक मंदी के संकेत दिखाई देने लगे हैं। अर्थशास्त्री वैश्विक और घरेलू आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए केन्द्र सरकार के हाल के फैसलों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि खाने-पीने की चीजों पर इस तरह गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लगाना जख्म पर नमक छिड़कना जैसा है।

क्या हैं आर्थिक मंदी के लक्षण?

अमेरिका ने अपने ब्याज दरों में खास परिवर्तन किया। दुसरे देश की तुलना में अमेरिका अपनी अर्थव्यव्यस्था को स्थायी और मजबूत माना जाता है। दुनियां के केन्द्रीय बैंकों ने इकोनॉमिक प्रोटेक्शनिज्म को ध्यान में रखकर, ब्याज दरों में बदलाव शुरू कर दिए हैं। इसी बीच भारतीय शेयर बाजार में 9 % से अधिक की गिरावट देखी गई। प्रति डालर भारतीय मुद्रा 80 रुपये के आंकड़े को पार कर गई है।

 

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