New India Co-operative Bank की वित्तीय स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बैंक पर कई पाबंदियां लगा दी हैं। लेकिन RBI के इस फैसले के बाद यह सवाल उठने लगे कि रिजर्व बैंक आखिर किसी बैंक पर पाबंदियां क्यों लगाता है, या फिर अगर कोई बैंक डूब जाता है तो उसके बाद उस बैंक में जमा ग्राहकों की जमा-पूंजी का क्या होता है? आज इसमें हम इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
महाराष्ट्र : भारतीय रिजर्व बैंक ने महाराष्ट्र के को-ऑपरेटिव बैंक न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक (New India Co-operative Bank) की वित्तीय स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बैंक पर कई पाबंदियां लगा दी हैं। इन प्रतिबंधों में सबसे बड़ी रोक यह है कि अब ग्राहक छह महीने के लिए बैंक से अपना पैसा नहीं निकाल सकते हैं। रिजर्व बैंक के इस फैसले के बाद बैंक के ग्राहकों में अफरातफरी मच गई है। शीर्ष बैंक के इस फैसले के बाद, बैंक की शाखा के बाहर ग्राहकों की भीड़ जमा हो गई, जो स्थिति को समझने और समाधान पाने की कोशिश कर रहे थे।
RBI ने ऐलान किया कि मुंबई स्थित न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक अब नए लोन जारी नहीं कर सकता, निवेश नहीं कर सकता और उधारी भी नहीं ले सकता। केंद्रीय बैंक ने बैंक पर निगरानी संबंधी चिंताओं (supervisory concerns) और नकदी संकट का हवाला देते हुए यह फैसला लिया है। ये पाबंदियां गुरुवार को कारोबार खत्म होने के बाद से लागू हो गई हैं और अगले छह महीने तक जारी रहेंगी। हालांकि RBI जरूरत पड़ने पर इसमें रिव्यू कर सकता है। RBI ने अचानक उठाए गए अपने इस कदम के ठोस कारणों का खुलासा नहीं किया।
हम जानते हैं कि भारत में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत और सुरक्षित रखना भारतीय रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है, लेकिन जब कोई बैंक अपने ग्राहकों की जमा राशि वापस करने में असमर्थ हो जाता है या उस बैंक का वित्तीय संकट इतना गंभीर हो जाता है कि वह अपना परिचालन सामान्य रूप से जारी नहीं रख पाता है, तो ऐसी स्थिति में RBI बैंकों पर प्रतिबंध लगा देता है।
इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे खराब ऋण प्रबंधन, नकदी संकट, वित्तीय अनियमितताएं या व्यापक आर्थिक मंदी। ऐसी स्थिति में RBI बैंक पर प्रतिबंध लगा सकता है, उसका पुनर्गठन कर सकता है या उसे पूरी तरह से बंद करने का फैसला भी ले सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) जमाकर्ताओं के पैसे की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता है। DICGC द्वारा दी जाने वाली बीमा सुरक्षा के तहत प्रत्येक जमाकर्ता को अधिकतम 5 लाख रुपये (मूलधन और ब्याज सहित) की गारंटी दी जाती है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई बैंक बंद हो जाता है, तो जमाकर्ता को उसकी जमा राशि में से अधिकतम 5 लाख रुपये की गारंटी दी जाती है, भले ही उसके खाते में इससे ज्यादा रकम क्यों न हो।
अगर बैंक पूरी तरह से बंद हो जाता है और उसे लिक्विडेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, तो DICGC के नियमों के मुताबिक 5 लाख रुपये तक की गारंटी दी जाती है। लेकिन अगर बैंक का पुनर्गठन या विलय होता है, तो जमाकर्ताओं को अपनी पूरी जमा राशि वापस मिलने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि बैंक के डूबने की स्थिति में ग्राहक की स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि RBI और सरकार उस बैंक के साथ क्या कदम उठाती है।
भारत सरकार और RBI मिलकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि बैंकिंग सिस्टम स्थिर रहे और ग्राहकों का पैसा सुरक्षित रहे। उदाहरण के लिए, 2020 में यस बैंक संकट के दौरान सरकार और RBI ने मिलकर पुनर्गठन योजना बनाई जिससे बैंक बच गया और जमाकर्ताओं की पूरी रकम सुरक्षित रही।
इसी तरह, PMC बैंक संकट के दौरान जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विलय प्रक्रिया अपनाई गई। अगर पिछले कुछ सालों में बैंकिंग संकट की बात करें तो भारत में पिछले कुछ सालों में कई बैंक संकट में आए हैं, जिनमें PMC बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक शामिल हैं।
पीएमसी बैंक (2019): वित्तीय अनियमितताओं के कारण इस बैंक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और बाद में इसे यूनिटी स्मॉल फाइनेंस बैंक में विलय कर दिया गया था।
यस बैंक (2020): जब यस बैंक की वित्तीय स्थिति खराब हुई, तो भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सहित अन्य बैंकों ने इसमें निवेश किया और इसे बचा लिया गया।
लक्ष्मी विलास बैंक (2020): जमाकर्ताओं के पैसे की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस बैंक का डीबीएस बैंक इंडिया में विलय कर दिया गया था।
भारत में बैंकों की विफलता के दौरान जमाकर्ताओं को 5 लाख रुपए तक की सुरक्षा मिलती है, लेकिन अन्य देशों में यह सीमा अलग हो सकती है। उदाहरण के लिए:
अमेरिका: फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) के तहत प्रति जमाकर्ता 250,000 डॉलर तक की सुरक्षा दी जाती है।
यूरोप: यूरोपियन डिपॉजिट इंश्योरेंस स्कीम के तहत 100,000 यूरो तक की सुरक्षा दी जाती है।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलियाई सरकार 250,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर तक की गारंटी देती है।
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