नई दिल्ली, Economic Survey 2022: भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझकर और ज्यादा मजबूत बनकर उभरी है. देश की अर्थव्यवस्था में तेज रफ्तार से रिकवरी हुई है, कहा जा सकता है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर का इकॉनमी पर उतना बुरा असर नहीं पड़ा, जितना पहली लहर का पड़ा था. बजट से एक दिन पहले 31 जनवरी को पेश हुए आर्थिक सर्वे के मुताबिक चालु वित्त वर्ष में जीडीपी 9.2 फीसदी की दर से बढ़ने की संभावना है. हालांकि, इस सर्वे के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में इसमें कुछ कमी आ सकती है और इकोनॉमी 8-8.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है.
सोमवार 31 जनवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इकनॉमिक सर्वे 2022 को संसद के पटल पर रखा. बता दें आर्थिक सर्वे बजट का मुख्य आधार है, इसमें अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर पेश की जाती है, जिसमें साल भर का पूरा लेखा-जोखा रहता है. इस सर्वे के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में इसमें कुछ कमी आ सकती है और इकोनॉमी 8-8.5 फीसदी की दर से बढ़ सकती है. हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि इकोनॉमी के सामने अब भी तीन चुनौतियाँ हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक महंगाई (Inflation), बेरोजगारी (Unemployment) और डिमांड जेनरेशन (Demand Generation) तीन सबसे बड़ी चुनौतियां हैं.
इकोनॉमी सर्वे में महंगाई को लेकर चिंता व्यक्त की गई है. इसमें अन्य देशों में तेज़ी से बढ़ रहे कच्चे तेल के दाम को जोखिम बताया गया है. घरेलू स्तर पर खुदरा महंगाई की बात करें तो इसकी दर दिसंबर 2021 में 5.6 फीसदी रही, भले ही यह रिजर्व बैंक के टारगेट के दायरे में है, लेकिन थोक महंगाई 10 फीसदी से ज्यादा बनी हुई है. हालांकि इकोनॉमी सर्वे में साल भर पहले के लो बेस रेट को इसके पीछे जिम्मेदार माना गया है.
भारत में रोजगार के अवसरों की कमी दशकों से एक मुख्य मुद्दा बना हुआ है, और हैरानी की बात तो ये है कि समय के साथ बेरोजगारी के दर में बढ़ोतरी होती ही जा रही है. महामारी से पहले भी बेरोज़गारी एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई थी, लेकिन महामारी के बाद इस बेरोज़गारी में पहले से ज्यादा बढ़त देखने को मिल रही है.
एक समय ऐसा भी था जब बेरोजगारी दर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 20 फीसदी से ज्यादा हो गई थी. चौथी तिमाही में यह कम होकर 9.3 फीसदी पर तो आई, लेकिन अभी भी महामारी से पहले की बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी से ज्यादा है. इसी तरह लेबर फोर्स में भागीदारी की दर महामारी से पहले 48.1 फीसदी थी, जो वित्त वर्ष 2020-21 की चोथी तिमाही में 47.5 फीसदी पर ही रही, हालांकि चालु वित्त वर्ष में इसमें मामूली गिरावट आने की संभावना जताई जा रही है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार ने पिछले तीन साल में सप्लाई साइड पर बहुत अच्छा काम किया. गरीब लोगों को फ्री खाना दिया, जिससे बहुत लोगों को फायदा मिला, लेकिन इस दौरान सरकार ने मिडल क्लास को बुरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया. मिडल क्लास पर महंगाई का सबसे बुरा असर हुआ, जिसके चलते डिमांड में कमी आई.
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