नई दिल्ली. साल 2012 में जब सायरस मिस्त्री को टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया तो हर किसी ने इस फैसले का तहे दिल से स्वागत किया, टाटा समूह के इतिहास में यह पहली बार था, जब किसी ऐसे शख्स को समूह की कमान दी गई थी जिसका टाटा परिवार से कोई सीधा नहीं संबंध नहीं था. रतन टाटा ने भी सायरस मिस्त्री की खूब सराहना की थी. हालांकि, कुछ ही साल में टाटा समूह और सायरस मिस्त्री के बीच मतभेद की खबरें आने लगीं. आइए आज हम आपको बताते हैं कि वो कौन से बड़े मुद्दे थे, जिसको लेकर टकराव बढ़ता चला गया:
सायरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच के विवाद की सबसे बड़ी वजह नैनो प्रोजेक्ट को माना जाता है, रिपोर्ट्स के मुताबिक टाटा मोटर्स के लगातार नुकसान में चलने की वजह से सायरस मिस्त्री नैनो की प्रोडक्शन को बंद करना चाहते थे. हालांकि, यह नैनो रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था. हर गरीब को लखटकटिया कार खरीदने का सपना साकार करने के लिए शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाई. टाटा नैनो की बिक्री में भारी गिरावट आने लगी और यही वजह थी कि सायरस प्रोजेक्ट को पूरी तरह बंद करने पर जोर दे रहे थे, यहीं से रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच थोड़ी अनबन होने लगी थी.
सायरस मिस्त्री की अगुवाई में टाटा समूह और जापान की टेलीकॉम कंपनी एनटीटी डोकोमो के बीच के विवाद से भी रतन टाटा नाखुश थे, दरअसल, साल 2009 में एनटीटी डोकोमो ने टाटा टेलीसर्विसेज बनाने के लिए टाटा के साथ भागीदारी की थी, चूंकि इस प्रोजेक्ट कई लक्ष्य पूरे नहीं हुए थे, जापानी साझेदार ने 2014 में ज्वाइंट वेंचर से बाहर निकलने का फैसला किया था.
इस समझौते के तहत डोकोमो चाहती थी कि टाटा या तो अपनी 26 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए एक खरीदार ढूंढे या फिर इसे खरीद ले. अब टाटा को कोई खरीदार नहीं मिला और उसने डोकोमो शेयर वापस नहीं खरीदा. इसके बाद जनवरी 2015 में, एनटीटी डोकोमो ने मध्यस्थता का मामला दायर किया. जून 2016 में, लंदन कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ने टाटा को एनटीटी डोकोमो को नुकसान में 1.17 बिलियन डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया.
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