नई दिल्ली। पिछले साल दिसंबर के महीने से ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति में लगातार गिरावट दिखाई दे रही है। लेकिन इससे ग्राहकों को राहत मिलने का नाम नहीं ले रहा। रिजर्व बैंक के अनुसार, मुद्रास्फीति के पिछले चार महीने में सबसे निचले स्तर पर होने के बावजूद खाद्य पदार्थों की […]
नई दिल्ली। पिछले साल दिसंबर के महीने से ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति में लगातार गिरावट दिखाई दे रही है। लेकिन इससे ग्राहकों को राहत मिलने का नाम नहीं ले रहा। रिजर्व बैंक के अनुसार, मुद्रास्फीति के पिछले चार महीने में सबसे निचले स्तर पर होने के बावजूद खाद्य पदार्थों की कीमतों का दबाव जारी है। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों के दबाव की वजह से मुद्रास्फीति चार फीसदी के दायरे में नहीं आ रही। यही कारण है कि ग्राहकों को अधिक कीमतें चुकानी पड़ रही हैं।
बता दें कि आज यानी मंगलवार को मुद्रास्फीति में तेजी से कमी न आने से जुड़े सवाल पर जारी मार्च बुलेटिन में रिजर्व बैंक ने देश में ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’ पर तस्वीर साफ की। आरबीआई का कहना है कि खाद्य कीमतों का दबाव इतना अधिक है कि खुदरा मुद्रास्फीति तेजी से कम होकर आरबीआई की तरफ से तय चार फीसदी के दायरे में नहीं आ पा रही है। वहीं आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा की मानें तो भले ही मुख्य मुद्रास्फीति में व्यापक नरमी दिखाई दे रही है। भले ही चार महीने से मुद्रास्फीति लगातार घट रही है लेकिन छोटे आयाम वाले खाद्य मूल्य का दबाव लगातार बनाहुआ है।
इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर देबब्रत पात्रा ने आगे कहा, दुनिया की कुछ सबसे लचीली अर्थव्यवस्थाओं में विकास दर धीमी हो रही है। ऐसे में आने वाले समय में गति और अधिक धीमी होने के संकेत मिल रहे हैं। पात्रा के अनुसार, संरचना से जुड़ी मांग और स्वस्थ कॉर्पोरेट और बैंक बैलेंस शीट भविष्य में विकास को गति देने वाली ताकतें बनेंगी। इसके साथ ही बुलेटिन में रिजर्व बैंक ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस बुलेटिन में व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ये भारतीय रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।