देश में शिक्षा का तेजी से व्यवसायीकरण हो रहा है और कोचिंग संस्थानों की भूमिका इसमें अहम है। सरकार कोचिंग कल्चर को गलत मानती है
Coaching Business: देश में शिक्षा का तेजी से व्यवसायीकरण हो रहा है और कोचिंग संस्थानों की भूमिका इसमें अहम है। सरकार कोचिंग कल्चर को गलत मानती है और इसे हतोत्साहित करने का दावा करती आई है, लेकिन हाल ही में संसद में पेश किए गए आंकड़े अलग ही कहानी बयां करते हैं।
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने 31 जुलाई को संसद में बताया कि पिछले पांच वर्षों में कोचिंग उद्योग से जीएसटी कलेक्शन में 146% की वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2019-20 में कोचिंग संस्थानों से सरकार को 2,240.73 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी, जो 2023-24 में बढ़कर 5,517.45 करोड़ रुपये हो गई।
वित्त वर्ष – जीएसटी कलेक्शन (करोड़ रुपये में)
– 2019-20: 2,240.73
– 2020-21: 2,215.24
– 2021-22: 3,045.12
– 2022-23: 4,667.03
– 2023-24: 5,517.45
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत कोचिंग कल्चर को हतोत्साहित करने की सिफारिश की गई है। मंत्री ने बताया कि इसका उद्देश्य कोचिंग संस्कृति का उन्मूलन है, लेकिन कोचिंग सेंटरों का सरकारी खजाने में योगदान पिछले पांच सालों में दोगुना हो गया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डी. मंजीत का कहना है कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था कोचिंग कल्चर को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। बच्चों पर परीक्षाओं का दबाव होता है, जिससे वे कोचिंग का रुख करते हैं। सरकार के पास कोचिंग सेंटरों के लिए स्पष्ट रेगुलेशन नहीं हैं, जो दिल्ली में हुए हादसे से भी स्पष्ट होता है।
नई शिक्षा नीति 2020 में भी रेगुलेशन की अस्पष्टता को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई थीं, लेकिन सरकार को पहला कदम उठाने में चार साल लग गए। 16 जनवरी 2024 को शिक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोचिंग सेंटरों के विनियमन के लिए निर्देश दिया।
प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. अमित कुमार निरंजन कोचिंग के व्यवसाय पर सरकार से और सख्ती की अपेक्षा रखते हैं। उनका कहना है कि कोचिंग सेंटर हर साल 20-25% फीस बढ़ाते हैं, लेकिन सुविधाएं नहीं बढ़ाते। कोचिंग सेंटरों का उद्देश्य अब पूरी तरह से कमर्शियल हो गया है और वे बच्चों को करियर के बारे में सही परामर्श देने का काम छोड़ चुके हैं।
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