नई दिल्ली, Budget 2022-2023 हर वित्तीय वर्ष की तरह इस साल भी संसद में बजट पेश होने जा रहा है. वित्त मंत्री बजट पेश करने के दौरान पूंजीगत व्यय, राजकोषीय घाटा, राजस्व प्राप्ति जैसे कई शब्दों का प्रयोग करते हैं. जानिये इन शब्दों के आखिर क्या मायने हैं.
राजस्व प्राप्तियां सरकार द्वारा प्राप्त किये गए वह सभी शुल्क, निवेशों पर आय और लाभांश होती है. इसे चालू आय भी कहा जाता है. इस आय से न तो देनदारी उत्पन्न होती है न ही सरकार की परिसंपत्ति में कोई कमी होती है. इस आय को कर राजस्व और गैर-कर राजस्व के रूप में विभाजित किया जाता है. परंपरागत रूप से देखें तो सरकार की प्रमुख आय का मुख्य स्त्रोत करों से प्राप्त राजस्व ही है.
पूँजी प्राप्तियां वो राशि है जिसे सरकार किसी गैर ऑपरेटिंग स्त्रोत से हासिल करती है. इसमें बाजार से लिए गए ऋण, रिजर्व बैंक और अन्य संस्थाओं से मिलने वाली उधार राशि, नेशनल स्मॉल सेविंग फंड को जारी की जाने वाली विशेष प्रतिभूतियों से प्राप्त राशि के साथ-साथ स्वयं के ऋणों की वसूली एवं सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश से प्राप्त होने वाली धनराशि भी शामिल होती है.
सरकार द्वारा किया गया वो व्यय जो सरकार अपने कर्मचारियों की मासिक वेतन, पेंशन , ब्याज के भुगतान के साथ-साथ मरम्मत और रखरखाव जैसे रूटीन कार्यों पर खर्च किया जाता हैं. इस सरकारी व्यय में ऊपरी खर्च जैसे सरकारी भुगतान, किराया, कर आदि भी शामिल होते हैं.
पूँजी व्यय में वह सभी खर्च शामिल हैं जिनका लाभ वर्ष तक न मिलकर आगे आने वाले कई वर्षों तक मिलता रहता है. इस प्रकार इस खर्च में वह व्यय शामिल हैं जिसे किसी स्थाई संपत्ति को खरीदने या स्थाई परिसंपत्ति के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है. इसके तहत भूमि, भवन, संयंत्र और मशीनरी तथा अन्य भौतिक अवसंरचनाओं के विकास आदि को शामिल किया जाता है. इसके साथ-साथ पूँजी व्यय में लोक ऋण, संस्थाओं को दिए गए ऋण, और अग्रिम अदाएगी को भी गिना जाता है.
राजस्व प्राप्तियों और राजस्व व्यय के बीच के फर्क को राजस्व घाटा कहा जाता है. समान्य शब्दों में जब सर्कार अपनी कमाई से ज़्यादा व्यय करना शुरू कर देती है तो इसे राजस्व घटा कहा जाता है. राजस्व घाटे में सर्कार की वर्त्तमान आय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. वर्तमान आय और व्यय पर सीधा प्रभाव डालने वाले वह सभी लेनदेन इसमें शामिल किये जाते हैं. राजस्व घटा ये बताता है कि सरकार की खुद की आय उसके अपने विभागों के दिन प्रतिदिन के खर्चों को उठाने में सक्षम नहीं है. कई बार सरकारें अपना घाटा संतुलित करने से पहले ही उधार लेना शुरू कर देती है.
वास्तव में बजट घटा कुल व्यय और राजस्व प्राप्तियों, ऋणों और अग्रिमों तथा अन्य गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियों की वसूली में होने वाला अंतर है. जब सरकार का कुल खर्च सरकारी की आमदनी से ज़्यादा होता है तो इसे बजट घाटा कहा जाता है. मौद्रीकरण की उपस्थिति में इसे जीरो मन गया है.
सरकार के कुल व्यय और सरकार की कुल आय के बीच के राजकोषीय घाटा कहा जाता है अर्थात पूंजी व्यय-राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियां-ऋणों-अग्रिमों समेत पूंजीगत प्राप्तियाों के बीच का अंतर राजकोषीय घाटा कहलाता है. आसान शब्दों में सरकार के घाटे और खर्च के बीच में हुई कमी को राजकोषीय घाटा कहते हैं. इसकी गणना जीडीपी के आधार पर की जा सकती है.
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