बायजूस को बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने BCCI के साथ समझौते पर लगाई रोक

टेक एजुकेशन कंपनी बायजूस (Byju's) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ अपलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस

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बायजूस को बड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने BCCI के साथ समझौते पर लगाई रोक

Anjali Singh

  • August 14, 2024 4:18 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: टेक एजुकेशन कंपनी बायजूस (Byju’s) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ अपलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें बायजूस और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के बीच समझौते की अनुमति दी गई थी। बायजूस ने BCCI को 158 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने BCCI को यह रकम अलग खाते में जमा करने का आदेश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश का आदेश

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह आदेश जारी किया है। बीसीसीआई के वकील, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने NCLAT के आदेश के खिलाफ अपील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि NCLAT के आदेश पर रोक लगाने से BCCI का समझौता रद्द हो जाएगा। कोर्ट ने बीसीसीआई से कहा है कि 23 अगस्त तक समझौते की राशि अलग खाते में जमा कराई जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी।

ग्लास ट्रस्ट की अपील

NCLAT के आदेश के खिलाफ यह अपील ग्लास ट्रस्ट ने की थी, जो बायजूस के लेंडर्स की ट्रस्टी है। ग्लास ट्रस्ट ने बायजूस को 1.2 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है। इससे पहले, NCLAT ने बायजूस के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई पर रोक लगा दी थी, क्योंकि बायजूस और BCCI के बीच समझौता हो गया था। समझौते के अनुसार, बायजूस के संस्थापक बायजू रविंद्रन (Byju Raveendran) ने अपने पर्सनल फंड से BCCI का बकाया चुकाने की बात कही थी।

सुप्रीम कोर्ट में बायजूस की याचिका

अगस्त महीने के पहले हफ्ते में, बायजू रविंद्रन ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्हें इस बात का डर था कि अमेरिकी क्रेडिटर BCCI डील का विरोध करते हुए कोर्ट जा सकते हैं। बायजू रविंद्रन ने मांग की है कि अगर ग्लास ट्रस्ट कंपनी (GLAS Trust Company) की याचिका पर सुनवाई होती है, तो पहले उनकी याचिका पर भी सुनवाई की जाए। इस घटनाक्रम ने बायजूस के लिए स्थिति और भी कठिन बना दी है। अब सभी की नजरें 23 अगस्त की अगली सुनवाई पर टिकी हैं।

 

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