नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे कि घर खरीदारों की रकम के गलत इस्तेमाल का पता लगाने के लिए आम्रपाली समूह की फॉरेंसिक ऑडिट की जाए. सात महीने बाद इसकी एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करवाई गई. अंतिम रिपोर्ट में कहा गया कि 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की अवैध हेराफेरी आम्रपाली समूह के वित्तीय पतन का कारण बनी जिससे हजारों निवेशक फंसे हुए हैं.
ग्रुप के आय व्यय और चल अचल सम्पदा का पूरा लेखा जोखा लेने वाले फोरेंसिक ऑडिट दल ने सुप्रीम कोर्ट को 2000 से भी ज्यादा पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंप दी. बाहरी ऑडिटर्स पवन अग्रवाल और रवि भाटिया की रिपोर्ट के मुताबिक इतनी बड़ी रकम डूबने की वजह बाजार का अचानक उतार चढ़ाव नहीं बल्कि इस ग्रुप के निदेशकों की जानबूझ कर की गई आपराधिक साजिशें थीं.
उन्होंने कहा कि समूह ने अपने अधिकारियों के नाम पर 100 से अधिक शेल कंपनियों की स्थापना की, जिसमें एक चपरासी को वरिष्ठ पद पर शामिल किया गया था. ये धन को डाइवर्ट करने के लिए इस्तेमाल किया गया था जिसका इस्तेमाल निदेशकों, अधिकारियों और उनके रिश्तेदारों के व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया था.
लगभग 46,000 लोगों ने आम्रपाली के आवास परियोजनाओं में निवेश किया था, लेकिन उन्हें फ्लैट नहीं दिए गए थे. ऋणदाताओं द्वारा कंपनी के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने के बाद खरीदारों ने सुप्रीम कोर्ट से मदद मांगी. फोरेंसिक ऑडिटर्स को सुप्रीम कोर्ट ने सात महीने पहले ऑडिट की जिम्मेदारी दी थी.
ऑडिट के दौरान आम्रपाली के सीएमडी सहित अन्य दो निदेशक पुलिस की निगरानी में नोएडा के एक आलीशान होटल में महीनों तक रहे थे. बाद में कोर्ट ने इनको न्यायिक हिरासत में भेज दिया. इस बीच आम्रपाली की सम्पत्तियों की नीलामी भी शुरू हो गई है. इस रिपोर्ट के बाद अब जेल में कैद आम्रपाली के निदेशकों और प्रमोटर्स पर कोर्ट का कोप और बढ़ने के आसार भी बढ़ गए हैं.
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