अहमदाबाद. पिछले प्रयासों में असफल रहने के बावजूद गुजरात सरकार ने विवादित आतंकवाद निरोधक बिल को विधानसभा से एक बार फिर पास करा लिया है. 12 साल पुराने गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक (गुजकोक) के संशोधित मसौदे को मंगलवार को बीजेपी सरकार ने विधानसभा में पेश किया और यह पारित हो गया.
कांग्रेस इस बिल का विरोध कर रही थी और जानकारी के मुताबिक वोटिंग से दूर रही. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य की मुख्यमंत्री आनंदी बेन को भरोसा है कि इस बार बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाएगी. गुजकोक को पिछले 12 सालों में तीन बार राज्य विधानसभा में पारित किया जा चुका है. अंतिम बार 2009 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी की सिफारिश के साथ भेजने से इनकार कर दिया था. इस बीच राज्य सरकार ने सदन में अब नया संशोधित विधेयक गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, 2015 पारित करा दिया है. इसमें कुछ संशोधन किए गए हैं, लेकिन विरोधियों का कहना है कि संशोधिन बिल में भी पुलिस के पास ज्यादा ताकत रहेगी और वह इसका दुरुपयोग कर सकती है.
इसमें प्रावधान है कि आरोपी को 30 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है, जबकि वर्तमान में यही सीमा 15 दिनों की है. एक और प्रस्ताव जिस पर बिल के विरोधियों को सबसे ज्यादा ऐतराज है, अगर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (सरकारी वकील) सिफारिश करता है तो पुलिस चार्जशीट करने के लिए 180 दिनों का समय ले सकती है. यह भी वर्तमान समय सीमा से दोगुनी है. विरोधी सबसे ज्यादा इन दोनों प्रावधानों का ही विरोध कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि इससे पुलिस के पास आरोपियों का उत्पीड़न करने के लिए पर्याप्त मौका होगा.
राज्य के गृह राज्यमंत्री रजनीकांत पटेल ने बिल का समर्थन करते हुए कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में संगठित अपराध हमारे समाज के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आया है. आर्थिक उन्नति के साथ गुजरात को आतंकवाद और आर्थिक अपराधियों के हमलों का सामना करना पड़ सकता है. इसे देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल को पेश किया था, लेकिन पूर्व की यूपीए सरकार ने इसे खारिज कर दिया. अब मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल इसे वापस लाना चाहती हैं.’
विधानसभा में विपक्ष के नेता शंकर सिंह वाघेला ने इसका विरोध करते हुए कहा, ‘मुझे पता है कि बिल विधानसभा से पास हो जाएगा लेकिन हम इसके विरोध में हैं. अगर यह सरकार गुजरात की सुरक्षा को लेकर इतनी चंतित थी तो वाजपेयी के सात साल शासन में रहने के दौरान इसे क्यों नहीं लाया गया.’ पहली बार इस बिल को केंद्र के पास 2004 में भेजा गया था, तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. वाजपेयी सरकार ने इसमें संशोधन करने के सुझाव दिए थे.
2009 में भी केंद्र सरकार ने गुजरात सरकार के आतंकवाद निरोधक कानून के तीन प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए उसे वापस भेज दिया था और कहा था कि जब तक राज्य सरकार उसमें केंद्री कानून के अनुरूप संशोधन नहीं करती, वह इसे मंजूर करने की सिफारिश राष्ट्रपति को नहीं करेगी. तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने तब कहा था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक पर फिर से विचार किया गया और इसके तीन प्रावधानों को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के अनुरूप नहीं पाया गया, जिसे देखते हुए केंद्र ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से इसे गुजरात सरकार को वापस करने की सिफारिश करने का फैसला किया.
IANS
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