राजनयिक सूत्रों के हवाले से खबर है कि केंद्र की मोदी सरकार हिंद महासागर में ताकत की नुमाइश करने जा रही है. अक्टूबर में होने वाली इस नुमाइश में जापान और अमेरिका भी हिस्सा लेंगे. भारत ने करीब 8 साल पहले इस तरह का बहुपक्षीय युद्धाभ्यास किया था और उस समय भी चीन इसे लेकर चिढ़ गया था.
नई दिल्ली. राजनयिक सूत्रों के हवाले से खबर है कि केंद्र की मोदी सरकार हिंद महासागर में ताकत की नुमाइश करने जा रही है. अक्टूबर में होने वाली इस नुमाइश में जापान और अमेरिका भी हिस्सा लेंगे. भारत ने करीब 8 साल पहले इस तरह का बहुपक्षीय युद्धाभ्यास किया था और उस समय भी चीन इसे लेकर चिढ़ गया था.
अब हिंद महासागर भारत और चीन के बीच प्रतियोगिता का नया ठिकाना बन गया है. चीन लगातार यहां अपनी पैठ बढ़ाता जा रहा है और भारत भी हिंद महासागर में अपने एकछत्र राज को बरकरार रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है. जानकारों के अनुसार, भारत ने हर साल होने वाले अपने ‘मालाबार युद्धाभ्यास’ को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है और वो इसमें जापान व अमेरिका जैसी मजबूत नौसेनाओं को शामिल करके इन देशों के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहता है.
नौसेना और राजनयिक सूत्रों के अनुसार भारत, अमेरिका और जापान के मिलिटरी अफसर बुधवार और गुरुवार को टोकियो के करीब योकोसुका में अमेरिकी नेवी बेस पर मुलाकात करेंगे. जापान सरकार के एक अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर इसकी पुष्टि कर दी है. उनका कहना है कि तीनों देशों की नौसेना से जुड़े लोग मिल रहे हैं और युद्धाभ्यास में शामिल होने पर बातचीत करेंगे. शुरुआती प्लानिंग से जुड़े सूत्रों के अनुसार इस मीटिंग में इस बात पर निर्णय किया जाएगा कि युद्धाभ्यास में किस तरह के युद्धपोत, जहाज और कितनी नौसेना को शामिल किया जाएगा. भारत और अमेरिका पहले के युद्धाभ्यासों में एयरक्राफ्ट कैरियर व पनडुब्बियों को इसमें शामिल करते रहे हैं.
हालांकि भारतीय रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने ‘मालाबार 2015’ पर किसी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की घोषणा युद्धाभ्यास से कुछ ही समय पहले की जाएगी. जापानी नौसेना के एक प्रवक्ता के अनुसार अभी किसी तरह का निर्णय नहीं किया गया है. अमेरिकी फॉरेन पॉलिसी काउंसिल में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ जेफ स्मिथ के अनुसार जापान को युद्धाभ्यास में शामिल करने की पीछे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मकसद अमेरिका और उसके सहयोगियों से संबंध प्रगाड़ करना है.
एजेंसी