देश के किसानों के लिए तो बुरी खबर है ही लेकिन अगर आप किसान नहीं हैं तो भी आप इसके असर से बच नहीं पाएंगे. खबर ये है कि इस साल मॉनसून ना सिर्फ देर से आ रहा है बल्कि बारिश भी कम होगी. केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने मंगलवार को कहा कि लंबे अरसे बाद इस साल औसत बारिश महज 88 फीसदी होने की संभावना है.
नई दिल्ली. देश के किसानों के लिए तो बुरी खबर है ही लेकिन अगर आप किसान नहीं हैं तो भी आप इसके असर से बच नहीं पाएंगे. खबर ये है कि इस साल मॉनसून ना सिर्फ देर से आ रहा है बल्कि बारिश भी कम होगी. केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने मंगलवार को कहा कि लंबे अरसे बाद इस साल औसत बारिश महज 88 फीसदी होने की संभावना है.
हर्षवर्धन ने इस मानसून को ‘सामान्य से कमजोर’ और ‘अपर्याप्त’ बताया. हर्षवर्धन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौसम में हो रहे बदलाव पर करीब से नजर रख रहे हैं. उन्होंने सभी संबंधित मंत्रियों को आवश्यक तैयारियां करने एवं कदम उठाने के निर्देश दिए हैं, ताकि आम जनता को परेशानी न हो. 12 से 16 फीसदी तक कम बारिश हो सकती है यानी किचन से लेकर कारोबार तक हर चीज पर पड़ेगा सीधा असर.
थाली पर पड़ेगा असर
आपकी थाली में परोसे जाने वाली दाल और मंहगी हो सकती है. सब्जी मंडी जाने में आपकी जेब को पसीने छूट सकते हैं. हो सकता है कि आप इस गर्मी में पंखे की हवा भी ना खा पाएं क्योंकि बिजली भी गुल सकती है. यही नहीं दफ्तर जाने के लिए ठंडे सूती कपड़ों के दाम भी आसमान छू सकते हैं क्योंकि कॉटन महंगा हो जाएगा. यानी जब भी आप बाजार जाएंगे तो आपको याद आएगी हमारी ये खबर.
बाजार को भी डर लग रहा है क्योंकि देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा है कि इस बार मॉनसून का दूसरा अनुमान पहले से भी ज्यादा चिंता में डालने वाला है. इससे चिंता क्यों होनी चाहिए ये समझने के लिए आपको पिछले चालीस सालों में मॉनसून की बारिश का आँकड़ा दिखाते हैं. इस दौर में देश में पांच बार सूखा पड़ा था.
साल 1972 में 24 फीसदी बारिश कम हुई
साल 1979 में 19 फीसदी बारिश कम हुई
साल 1987 में भी 19 फीसदी बारिश कम हुई
साल 2002 में भी 19 फीसदी बारिश कम हुई
और साल 2009 में 24 फीसदी बारिश कम हुई
यानी इन पांच बरस में से तीन बार 19 फीसदी बारिश कम हुई. साल दो हजार बारह में भी पहले दो महीनों में 19 फीसदी सूखे जैसे हालात बन गए थे जो बाद के दो महीनों की बारिश से पूरे तो हो गए लेकिन पैदावार नहीं सुधरी.
ऑटोमोबाइल पर असर
अब बात करें गाड़ियों की तो आप चौंक जाएंगे.भला बारिश का गाड़ियों से क्या लेना देना.शहर में बिकने वाली गाड़ियों पर भले ही कम असर हो लेकिन गांव में बिकने वाली गाड़ियों पर बेहद बुरा असर होगा.फसल नहीं तो पैसे नहीं- पैसे नहीं तो गाड़ी नहीं. कोई भी काम हो गांवों में हर मर्ज की दवा है ट्रैक्टर. बुवाई से लेकर ढुलाई तक हर काम करने वाले इस ट्रैक्टर को खरीदने के लिए चाहिए पैसे लेकिन अगर बारिश कम हुई तो खेत सोना नहीं उगलेंगे फिर कैसे खरीदेंगे किसान ये सौ मर्जों की एक दवा.
कम बारिश का सबसे ज्यादा खतरा पश्चिमी और उत्तरी भारत मे है. ऐसे में ट्रैक्टर की मांग पर अभी से असर दिख रहा है. साल 2013-14 में ट्रैक्टर की कुल बिक्री का 15 फीसदी सिर्फ पश्चिम भारत में खऱीदे गए लेकिन साल 2014-15 में इसमें 3 से 5 फीसदी की कमी आ चुकी है. यही नहीं साल 2013-14 में उत्तर भारत में कुल बिक्री के 28 फीसदी ट्रैक्टर खरीदे गए थे लेकिन इस बार इसमें 5 से 7 फीसदी की कमी आ चुकी है. यानी ऑटोमोबाइल उद्योग पर असर अभी से दिखने लगा है. गांव में बसने वाले भारत की जेब में पैसा ना हो तो दुपहिया वाहन और कारों पर भी असर होगा क्योंकि एक तिहाई ऐसी गाड़ियां तो गांवों में ही बिकती हैं.
टेक्सटाइल पर असर
मॉनसून में कमी आई तो आपके कपड़ों पर भी असर पड़ेगा.उन नए कपड़ों पर जो आप इस साल खरीदने वाले हैं. क्योंकि कम बारिश इस साल खरीफ की उन फसलों पर असर डालेगी जिनमें कॉटन भी आता है. आंकड़ों की बात करें तो हम आपको बता चुके हैं की साल 2012 में मॉनसून में हुई देरी से ही बड़ा असर पड़ा था. साल 2011 में अनुमान से सिर्फ 12 फीसदी कॉटन कम पैदा हुआ था लेकिन देर से आए मॉनसून ने साल 2012 में इसके उत्पादन में 21 फीसदी की कटौती कर दी थी.
ऐसा ही इस बार भी हो सकता है क्योंकि बारिश साथ नहीं देने वाली.जाहिर है कॉटन कम होगा तो उसकी मांग बढ़ जाएगी.दूसरी तरफ कॉटन का एक्सपोर्ट भी कम हो जाएगा. साल 2011-12 के मुकाबले साल 2012-13 में यानी जब मॉनसून देर से आया था तब कॉटन के एक्सपोर्ट में 37 फीसदी की गिरावट आई थी. जाहिर एक तरफ सरकार डीजल पर ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी वहीं कॉटन का एक्सपोर्ट कम होने से विदेशी मुद्रा की कमाई भी कम हो जाएगी. कपड़ा बाजार में जो महंगाई आएगी वो अलग से.
IANS से भी इनपुट