लखनऊ। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है। सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने रखा पक्ष यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट जा चुका […]
लखनऊ। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है।
यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट जा चुका है। राज्य सरकार की ओर से चीफ जस्टिस के सामने इस मामले को सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने रखा। यूपी सरकार ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर दिए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है। अब 4 जनवरी यानी बुधवार को इस मामले की सुनवाई की जाएगी।
यूपी निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ये चुनाव बिना आरक्षण के संपन्न कराया जाए। अब ओबीसी के लिए आरक्षित सीटें सामान्य मानी जाएंगी। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सूबे के मुख्यमंत्री ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि के हाईकोर्ट के इस फैसले को हम सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे और यूपी निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के संपन्न नहीं होगा। योगी के इस बयान के बाद राज्य की विपक्षी पार्टियां उनपर हमलावर हो गईं थी। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा था कि आरक्षण विरोधी बीजेपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर अपनी झूठी सहानभूति दिखा रही है। अखिलेश के अलावा शिवपाल सिंह ने भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ओबीसी के एक बड़े वर्ग वोट के कारण ही जीतती नजर आती है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में औऱ साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ओबीसी जातियों के समर्थन पर ही सत्ता में जीत दर्ज की थी। ऐसे में हाईकोर्ट का ये फैसला की निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराया जाए, बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
यूपी में कुल 234 पिछड़ी जातियां हैं। वहीं लगभग 35 फीसदी आबादी ओबीसी से आती है। इन जातियों में मुख्य रुप से यादव, कुर्मी, मौर्य, सैनी, साहू और कश्यप समेत कई और जातियां शामिल हैं। उत्तर प्रदेश का पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति ने एक रिपोर्ट में 27 फीसदी आरक्षण को तीन भागों में बांटने की सिफारिश की है, जो कि इस प्रकार हो पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग में कम से कम जातियों को शामिल करने की मांग की गई है, जिसमें यादव और कुर्मी जैसी संपन्न जातियां शामिल हों।
गौरतलब है कि यूपी के अंदर कुल 762 शहरी निकाय हैं। इसमें 17 म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, 545 नगर पंचायत और 200 नगरपालिका परिषद हैं। इन शहरी निकायों की कुल लगभग 5 करोड़ है। वहीं 17 म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की दो सीटों को अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षित किया गया है। इन दो में एक आगरा की सीट है, जो कि महिला उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। वहीं 4 मेयर की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है।