अनपढ़ नहीं, ये नागा साधू हैं डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर, 70 फीसदी संन्यासी के पास बड़ी डिग्रियां

पंचायती निरंजन अखाड़ा पहला अखाड़ा है जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर भी नागा की दीक्षा लेकर जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं। जूना अखाड़े के बाद सबसे ताकतवर माने जाने वाले इस अखाड़े की स्थापना 860 में हुई थी।

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अनपढ़ नहीं, ये नागा साधू हैं डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर, 70 फीसदी संन्यासी के पास बड़ी डिग्रियां

Neha Singh

  • November 30, 2024 1:10 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 hours ago

नई दिल्ली: संत साधुओं और संन्यासियों को लेकर लोगों की अवधारणा यही रहती है कि ये लोग शिक्षित नहीं, इन्हें आज के समय के शिक्षा के बारे में कुछ नहीं पता। लेकिन ऐसा बिल्कुल गलत है। आज हम बताएंगे ऐसे नागा साधुओं के बारे में जिन्होंने उच्च डिग्रियां हासिल करने के बाद सांसारिक मोह त्याग दिया। दरअसल पंचायती निरंजन अखाड़ा पहला अखाड़ा है जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर भी नागा की दीक्षा लेकर जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं।

जूना अखाड़े के बाद सबसे ताकतवर माने जाने वाले इस अखाड़े की स्थापना 860 में हुई थी। इस अखाड़े का पूरा नाम श्री पंचायती तपोनिधि निरंजन अखाड़ा है। अगर साधुओं की संख्या की बात की जाए तो निरंजनी अखाड़ा देश के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में है। जूना अखाड़े के बाद इसे सबसे ताकतवर अखाड़ा माना जाता है। यह देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक है।

MBBS डिग्री धारक हैं साधु

इस अखाड़े में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधु हैं। इसमें डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर शामिल हैं। वृंदावन के आश्रम में रहने वाले निरंजनी अखाड़े के आदित्यानंद गिरि एमबीबीएस डिग्रीधारी हैं। जबकि इस अखाड़े के सचिव ओंकार गिरि इंजीनियर हैं। उन्होंने एमटेक किया है। इसी तरह महंत रामरत्न गिरि दिल्ली स्थित डीडीए में सहायक अभियंता के पद पर काम कर चुके हैं। डॉ. राजेश पुरी ने पीएचडी की उपाधि हासिल की है तो महंत रामानंद पुरी अधिवक्ता है। निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि शैव परंपरा के इस अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। इस अखाड़े में संन्यास की दीक्षा योग्यता के आधार पर ही दी जाती है।

कुंभ में होता है चुनाव

सनातन धर्म के प्रचार के लिए अखाड़े की तरफ से वेद विद्या स्कूल-कॉलेजों की भी स्थापना भी की गई है। छह साल में लगने वाले कुंभ और अर्ध कुंभ में योग्यता के आधार पर पदों के लिए चुनाव होता है। इसके बाद चयनित संतों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है।

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