नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नया आवेदन दायर किया है। इस आवेदन में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर विचार करने पर सवाल उठाए हैं। केंद्र ने कहा कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के सृजन या संबंध को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और ये न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं।
मामले को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि, अगर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाती है तो इसका व्यापर असर समाज में होगा। सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं बल्कि ये शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को ही दर्शाती हैं। इस देश के विभिन्न वर्ग और पूरे देश के नागरिकों के विचार नहीं माने जा सकते हैं। सरकार ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं की विचारणीयता पर विचार करे कि क्या इन्हें सुना जा सकता है या नहीं। कानून सिर्फ विधायिका द्वारा बनाया जा सकता है, न्यायपालिका द्वारा नहीं।
बता दें, समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 15 याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हे सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इन यचिकाओं को पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश दिया था। इसकी अगली सुनवाई कल 18 अप्रैल को हो सकती है।
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