नई दिल्ली। औपेनिवेशिक काल से चले आ रहे देशद्रोह कानून को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। बता दें, देशद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल 16 याचिकाएं दायर की गई है। इनमें से एक याचिका एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी दायर की है। वहीं इससे पहले कोर्ट ने पिछले साल 11 मई को जारी किए गए अपने फैसले में इस कानून पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि जब तक केंद्र सरकार इस कानून को लेकर अपनी समीक्षा पूरी नहीं कर लेती तब तक कोई नया केस दर्ज ना किया जाए। बाद में कोर्ट ने अपने फैसले की अवधि को बढ़ाकर 31 अक्टूबर तक कर दिया था।
बताया जा रहा है सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाल की पीठ इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करेंगी। इससे पहले पिछले साल 31 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने पीठ से मामले को लेकर कुछ और समय मांगा था, क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र में कानून में किसी तरह के बदलाव करने के कयास लगाए जा रहे थे।
कोर्ट ने 11 मई को जारी अपने फैसले में इस विवादास्पद कानून पर उस समय तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कि केंद्र सरकार औपनिवेशक काल के इस कानून की समीक्षा पूरा नहीं कर लेती। इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस कानून के तहत कोई नया मामला दर्ज नहीं करने को भी कहा था। साथ ही न्यायालय ने ये भी निर्देश दिया था कि राजद्रोह कानून के तहत चल रही जांच, मुकदमें और सभी कार्यवाहियों पूरे देश में निलंबित रखी जाए। साथ ही राजद्रोह के आरोपों में जेल में बंद लोग जमानत के लिए अदालत का रुख भी कर सकते थे।
बता दें, भारतीय दंड संहिता राजद्रोह के अपराध को 1890 में धारा 124(ए) के तहत शामिल किया गया था। बता दें, इंटरनेट मीडिया सहित अन्य मंचों पर असहमति की आवाज को दबाने के औजार के रुप में इसका इस्तेमाल किए जाने को लेकर इसका कड़ा विरोध किया जा रहा था। जिसके बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अलावा मेजर जनरल ( रिटायर्ड) एसजी वोमबटकेरे, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने इस मुद्दे पर याचिकाएं दायर की हैं।
वहीं पिछले पांच साल की ही बात कि जाए तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार अकेले 2015 से 2020 के बीच राजद्रोह के 356 मामले दर्ज किए गए थे, और इस कानून के तहत 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
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