नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने की मांग को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि, प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस इंडिया की कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को चयन करने का फैसला लेगी।
हालांकि, इनकी नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहेगा। पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार शामिल है। बता दें, पीठ ने पिछले साल 24 नवंबर को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में चुनाव प्रक्रियाओं में निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र लोगों की इच्छा से जुड़ा हुआ है, और इसके खिलाफ किसी तरह की बयानबाजी इसके लिए नुकसानदेह हो सकती है। कोर्ट ने आगे कहा कि, लोकतंत्र में चुनावों में हमेशा निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, वर्ना इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते है। कोर्ट ने कहा कि भारत का निर्वाचन आयोग स्वतंत्र व निष्पक्ष तरीके से काम करने के लिए बाध्य है और उसे संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करना चाहिए।
यह सारा मामला अरुण गोयल की नियुक्ति को लेकर हुआ था, पिछले साल 19 नवंबर को केंद्र सरकार ने पंजाब कैडर के आईएएस अफसर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया था। अरुण गोयल की नियुक्ति पर इसलिए विवाद हुआ था क्योंकि वो 31 दिसंबर 2022 को रिटायर होने वाले थे, और 18 नवंबर को उन्हें वीआरएस दिया गया और अगले ही दिन चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया।
बिजली की तेजी से विभागों से पास हुई फाइलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सवाल उठाते हुए कहा था कि, केंद्र सरकार ने जिन्हें चुनाव आयुक्त बनाया है, वो एक दिन पहले तक केंद्र सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी थे। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले पर सवाल उठाते हुए इस पर किसी तरह की गड़बड़ी का अंदेशा जताया था।
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