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…जब हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भिड़ गये, भड़के चीफ जस्टिस, जानें पूरा मामला!


नई दिल्ली.
न्यायालय के फैसलों में मतभेद और अलग अलग फैसले बहुत सामान्य बात है. लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि जिसके पास पहुंच और पैसा हो वह ऊपरी अदालत में दस्तक देकर जल्दी न्याय पा सकता है. इसको लेकर न्यायालय की आलोचना भी होती है लेकिन फिलहाल जो मामला सबसे अधिक चर्चे में है उसमें पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आमने सामने दिख रहे हैं.


भड़के चीफ जस्टिस

 

हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत ने कुछ ऐसा कह दिया था कि चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड भड़क गये. उन्होंने कहा कि न हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट सर्वोच्च है, सर्वोच्च है संविधान. पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने मामले पर सुनावाई की और जस्टिस सहरावत की टिप्पणियों को हटा दिया. चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि हाईकोर्ट की एकल पीठ ने जो भी कहा उससे बहुत पीड़ा पहुंची है.


हाईकोर्ट की टिप्पणियों को हटाया

 

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने राजबीर सेहरावत की टिप्पणियों को निंदनीय और अनुचित बताया और उसे हटा दिया. पीठ में चंद्रचूड के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, बी आर गवई, सूर्यकांत और ऋषिकेश रॉय शामिल थे। पीठ ने न्यायिक अनुशासन पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में उच्च न्यायालयों के आदेशों पर विचार करते समय अधिक सावधानी बरती जाएगी। पीठ ने साफ किया कि हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट कोई सर्वोच्च नहीं है, सर्वोच्च है संविधान. पीठ हाईकोर्ट के आदेश और टिप्पणी से नाराज थी लेकिन हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया.

 ये है पूरा मामला

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में अवमानना का एक मामला चल रहा था. मामला भूमि अधिग्रहण से जुड़ा था जिसके मुआवजे और ब्याज को लेकर विवाद था. इसमें हाईकोर्ट की एकल पीठ और खंडपीठ से फैसला होने के बाद उसका पालन नहीं हुआ तो अवमानना याचिका दाखिल हुई जिस पर बेंच सुनवाई कर रही थी. इसी दौरान मामला सुप्रीम कोर्ट गया और वहां से अवमानना की सुनवाई पर रोक लगा दी गई.

सुप्रीम कोर्ट अपने को सर्वोच्च मानता है


इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत ने 17 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट की अधीनस्थ अदालत नहीं है. अवमानना की कार्रवाही में दखल देते समय सुप्रीम कोर्ट को सावधानी बरतनी चाहिए थी. इस मामले में याचिका हाईकोर्ट की खंडपीठ के पास जानी चाहिए थी न कि सुप्रीम कोर्ट के पास.

जस्टिस सहरावत ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट में यह मानने की प्रवृत्ति है कि वास्तव में वह सुप्रीम है और हाईकोर्ट को अपने से कम उच्च मानता है. अगर सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है तो हाई कोर्ट भी कम हाई नहीं है. जस्टिस सहरावत ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो मान लिया लेकिन हताशा व्यक्त की थी और सुप्रीम कोर्ट से अंतिम फैसला आने तक सुनवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी थी.

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Vidya Shanker Tiwari

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