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बांग्लादेश में लोगों की राजधानी बदलने की मांग, कहा ढाका रहने लायाक नहीं

भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में राजधानी बदलने की मांग तेजी से बढ़ रही है. यहां के लोग अब बुनियादी सुविधाओं के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं.

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inkhbar News
  • March 26, 2025 1:17 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 days ago

नई दिल्ली: बांग्लादेश में लोगों राजधानी ढाका को बदलने की मांग कर रहे है. राजधानी को बदलने का मुख्य कारण शहर में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है. ढाका शहर 306 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है.
वहीं इस शहर में 1 करोड़ से ज्यादा लोग रहते है. इस शहर में 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन- यापन करती है. बता ढाका शहर नदी के किनारे बसा है. यहां पर बड़ी संख्या में लोगों को स्वच्छ पेयजल तक पीने को नहीं मिलता है. कुछ चुनिंदा इलाकों को छोड़कर, पूरा शहर विकास के लिए झूझ रहा है. धूल, गंदगी, रिचमंड-फुटी रोड, जीर्ण-शीर्ण पेंडेंट, फ्लोरिडा की लॉ फर्म और रियल एस्टेट की कमी ने यहां के लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है.

 

ढाका रहने लायक नहीं

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब यहां के स्थानीय लोग इस शहर को रहने के लायक नहीं मानते है. वहीं ढाका में सभी चीजें केद्रीकृत होने के कारण नागरिकों को मजबूरी में भीड़भाड़ का सामना करना पड़ता है. बता दें अगर कोई सुरक्षित और बेहतर जीवन की तलाश में शहर से जाना भी चाहे तो यह आसान नहीं है.

सार्वजनिक परिवहन की बदहाली

रिपोर्ट के अनुसार, ढाका में सार्वजनिक परिवहन की हालत इतनी दयनीय है कि यात्रियों को खड़े होने की भी जगह नहीं मिलती. बसों में भारी भीड़ के कारण कई लोग जोखिम उठाकर दरवाजे से लटककर यात्रा करने को मजबूर हैं. एक निजी बैंक के अधिकारी मारुफुल हक ने अपने डेली के संघर्ष को साझा करते हुए कहा, ‘कार्यालय समय के दौरान बस में सीट मिलना नामुमकिन सा है. परंतु नौकरी छोड़ना कोई विकल्प नहीं है. किसी तरह से हमें बस में चढ़ना ही पड़ता है. चाहे धक्का देकर या दरवाजे से लटककर.

सड़कों पर पैदल चलना भी मुश्किल

मारुफुल हक ने निराशा जाहिर करते हुए कहा कि भीड़भाड़ केवल बसों तक सीमित नहीं है. सड़कें पर हर वक्त जाम रहता है. वहीं फुटपाथों पर चलना भी मुश्किल है हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. हमें शहर में किसी तरह से रहना पड़ता है. हम भीड़-भाड़ वाली बसों में यात्रा करते हैं, ट्रैफ़िक से जूझते हैं और थककर अपने काम पर पहुँचते हैं. यह हमारी रोजमर्रा की जीवन की कठिनाई है.

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