Inkhabar Explainer। मणिपुर मामले को लेकर संसद में हंगामा जारी है। 20 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र में एक दिन भी मणिपुर पर ठीक से चर्चा नहीं हो पाई है। संसद में जारी हंगामे के बीच अब विपक्षी महागठबंधन INDIA के सदस्य मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाकर मोदी सरकार को मणिपुर मामले में लंबी चर्चा के लिए मजबूर करना चाहता है। इस दौरान पीएम मोदी को मणिपुर हिंसा के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। सरकार के पास बहुमत के आंकड़े से ज्यादा नंबर है, इसलिए वो इस प्रस्ताव के सफल न होने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। लेकिन क्या आप जानते है भारतीय संसदीय प्रक्रिया में अब तक कितने बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है? इस प्रस्ताव से पहले भी दो सरकारें अपनी सत्ता को खो चुकी है।
लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावाली के नियम 198(1) से लेकर 198(5) तक मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया बताई गई है। किसी भी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है, जब विपक्ष को लगता है कि सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है। आजादी के बाद सबसे पहले 1963 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लाया गया था। अगर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है और सरकार के पास जरूरी बहुमत का आंकड़ा नहीं होता, तो ऐसे समय में सरकार गिर जाती है। सत्ता में रहने के लिए सरकार को बहुमत दिखाना होता है। कोई भी लोकसभा सांसद जिसे 50 सांसदों का समर्थन हासिल है किसी भी समय मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है।
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार 1963 में जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ जेबी कृपलानी द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। तब नेहरू की सरकार के खिलाफ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में 62 और विरोध में 347 वोट पड़े थे। इसके अलावा संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है, इसमें सबसे ज्यादा 15 बार इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। अविश्वास प्रस्ताव से अब तक दो बार 1978 में मोरारजी देसाई और और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी।
आपातकाल खत्म होने के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत मिला और मोरारजी देसाई देश के नए प्रधानमंत्री बने। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री रहते हुए उनके खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। इस दौरान पहले प्रस्ताव से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन 1978 में लाए गए दूसरे अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार के घटक दलों में आपसी मतभेद थे। इसी कारण अपनी हार का अंदाजा लगते ही मोरारजी देसाई ने मत-विभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। वहीं 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के समर्थन वापस लेने से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। तब वाजपेयी सरकार 1 वोट के अंतर से हार गई थी।
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Monsoon Session : अविश्वास प्रस्ताव पर पीएम मोदी की भविष्यवाणी हुई सच, 2018 में कही थी ये बात
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