ग्वालियर। दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लेकर सेना का विमान ग्वालियर के महाराजपुरा एयरबेस पहुंच चुका है। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान लंबे समय से 12 चीतों के स्वागत का इंतजार अब खत्म हो चुका है। चीतों को ग्वालियर एयरबेस पर मेडिकल परीक्षण के बाद हेलीकाप्टर से कूनो पार्क भेजा […]
ग्वालियर। दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लेकर सेना का विमान ग्वालियर के महाराजपुरा एयरबेस पहुंच चुका है। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान लंबे समय से 12 चीतों के स्वागत का इंतजार अब खत्म हो चुका है। चीतों को ग्वालियर एयरबेस पर मेडिकल परीक्षण के बाद हेलीकाप्टर से कूनो पार्क भेजा जाएगा इनके पहुंचने के साथ ही इस उद्यान में चीतों की संख्या अब बढ़कर 20 हो जाएगी।
#WATCH | Indian Air Force’s (IAF) C-17 Globemaster aircraft carrying 12 cheetahs from South Africa lands in Madhya Pradesh’s Gwalior. pic.twitter.com/Ln19vyyLP5
— ANI (@ANI) February 18, 2023
बता दें, चीतों को बाड़े में छोड़ने के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, नरेंद्र सिंह तोमर और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हिस्सा लेंगे। इस दौरान एयरफोर्स स्टेशन पर मुरार एसडीएम के अलावा कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहेंगे। अधिकारियों के अनुसार चीतों को साउथ अफ्रीका से आने वाले विमान से उतारने के बाद रूटीन परीक्षण किया जाएगा जो वेटरनरी डॉक्टरों की टीम करेगी। दक्षिण अफ्रीका से लाए जा रहे 12 चीतों के इस जत्थे में सात नर और पांच मादा चीते है।
इससे पहले नामीबिया से आठ चीतों को लाया गया था जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर 2022 को अपने जन्मदिन के अवसर पर कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। 1952 में भारत सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया था, जिसके 71 वर्ष बाद चीतों को मोदी सरकार ने फिर से बसाने की पहल की है। भारत में वन्य जीवन के इतिहास में यह नए युग की शुरूआत हुई है।
बता दें, भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना प्रोजेक्ट चीता के तहत वन्य प्रजातियों विशेषकर चीतों के सरंक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में सहयोग देने के लिए अंतरराष्ट्रीय यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के दिशा- निर्देशों के अनुसार भारत में चीतों को फिर से बसाया जा रहा है। बता दें, भारत में अंतिम चीते की मृत्यु वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में 1947 में हुई थी और इस प्रजाति को देश में 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
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