नई दिल्ली. दुनिया में चल रहे दो युद्धों रूस-यूक्रेन और इजरायल-गाजा-लेबनान के बीच अचानक कजान सत्ता के केंद्र बनकर उभरा है. इस शहर से दिये जा रहे संदेश पर पूरी दुनिया खासतौर से पश्चिम की पैनी नजर है. औपचारिक मौका ब्रिक्स सम्मेलन का है जिसमें ब्रिक्स (BRICS) में अभी 5 देश B से ब्राजील, R से रूस, I से इंडिया, C से चीन और S से साउथ अफ्रीका है.
हाल में छह और देशों ईरान, अर्जेंटीना, इथियोपिया, इजिप्ट, ईरान, यूएई और सऊदी अरब को शामिल किये गये हैं. कुछ की औपचारिकताएं पूरी होनी बाकी है. यानी कि 11 देश इस संगठन के सदस्य बन गये हैं जिसके बाद इसे ब्रिक्स+ कहा जा रहा है. विस्तारित समूह की आबादी लगभग 3.5 बिलियन है जो विश्व की जनसंख्या का लगभग 45 फीसद है. यानी कि लगभग आधी आबादी. अर्थव्यवस्था 28.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 28 फीसद है.
यहां पर जुटे नेताओं और दिये जाने वाले संदेश के साथ दो देशों के प्रमुख सुर्खियां बटोर रहे हैं और पूरी दुनिया उन्हें ध्यान से देख रही है. ये नेता हैं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. बहुत दिनों बाद ये दोनों नेता साथ दिखे हैं. अप्रैल-मई 2020 में लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के आमने सामने आने और 15 जून को गलवान में खूनी संघर्ष के बाद सौहाद्रपूर्ण मुलाकात निश्चित रूप चौंकाने वाली है. हर कोई जानना चाह रहा है कि दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ कैसे पिघली और किसने मदद की?
ये और कोई नहीं बल्कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन हैं. इस साल जुलाई में कजाकिस्तान में एससीओ की बैठक हुई थी जिससे इतर चीन के विदेश मंत्री वांग यी और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात हुई थी. इसी दौरान भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी वांग यी से मिले थे. बेशक इन मुलाकातों को सामान्य मुलाकात बताया गया था लेकिन पूरी योजना के साथ इन बैठकों को कराने में रूसी राष्ट्रपति पुतिन मदद कर रहे थे. लाओस में भी भारत और चीन के विदेश मंत्री मिले थे. दो महीने बाद सितंबर में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पुतिन से मिलने रूस गये थे और दोनों की तस्वीरें खूब वायरल हुई थी.
तब कहा गया कि पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा के फलसफा को लेकर डोभाल वहां पुतिन से मिलने गये हैं लेकिन असल में पर्दे के पीछे भारत-चीन को नजदीक लाने की जो स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी उसे अंतिम टच देने वह गये थे. इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि 12 सितंबर को डोभाल-पुतिन की मुलाकात के बाद चीनी विदेश मंत्री वांग यी भी पुतिन से मिले थे. बाद में डोभाल और वांग यी भी आपस में मिले जिसकी तस्वीरों पर खासी चर्चा हुई थी.
दरअसल यूक्रेन युद्ध में फंसने के बाद जिस तरह पश्चिम ने रूस पर प्रतिबंध लगाया उसके बाद रूस को ये बात समझ में आ गई कि इस संकट की घड़ी में उसकी मदद भारत और चीन ही कर सकते हैं. यही वजह है कि पश्चिम खासतौर से अमेरिका की नाराजगी के बावजूद भारत रूस से तेल खरीदता रहा. रूस चीन को यह समझाने में कामयाब रहा कि यदि पश्चिम से लड़ना है तो भारत के साथ सीमा विवाद खत्म करना होगा. भारत पहले ही चीन को बता चुका था कि सीमा विवाद को खत्म किये बगैर दोनों देशों के रिश्ते आगे नहीं बढ़ सकते. चीन ने भी अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को समझा और दोनों देशों में एलएसी पर गश्त को लेकर समझौता हो गया. इस सम्मेलन के बाद देखना होगा कि दोनों देशों के रिश्ते कैसे आगे बढ़ते हैं.
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