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इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन बोला हम कूड़ेदान नहीं, ऐसा जज नहीं चाहिए जिसके यहां मिले करोड़ो रुपये!

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक बंगले में आग लगने के बाद 15 करोड़ रुपये की नकदी बरामद होने की घटना ने न्यायिक हलकों में भूचाल ला दिया है. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला किया.

जस्टिस यशवंत वर्मा
  • March 21, 2025 3:47 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 days ago

प्रयागराज: दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक बंगले में आग लगने के बाद 15 करोड़ रुपये की नकदी बरामद होने की घटना ने न्यायिक हलकों में भूचाल ला दिया है. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला किया. लेकिन इस निर्णय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन को आक्रोशित कर दिया है. बार एसोसिएशन ने इसे सिरे से खारिज करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया और कहा ‘हम कोई कूड़ेदान नहीं हैं भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे.’

जजों की कमी के बीच विवादास्पद ट्रांसफर

इलाहाबाद हाई कोर्ट इन दिनों जजों की भारी कमी से जूझ रहा है. कई वर्षों से नए न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं हुई है. जिसके चलते लंबित मामलों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में जस्टिस यशवंत वर्मा का ट्रांसफर बार एसोसिएशन के लिए नाराजगी का कारण बन गया है. प्रस्ताव में कहा गया कि जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर के मुद्दे पर बार से कभी सलाह नहीं ली जाती. बार ने इसे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी करार दिया.

पक्षपात के आरोप और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन

बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा पर गंभीर आरोप लगाए हैं. प्रस्ताव में दावा किया गया है कि वह लगातार पक्षपातपूर्ण आदेश पारित कर रहे हैं खासतौर पर अधिवक्ताओं और बार सदस्यों को निशाना बनाते हुए. कुछ मामलों में बिना प्रभावित पक्ष को सुनवाई का मौका दिए ही एफआईआर और दमनात्मक कार्रवाइयों के आदेश जारी किए गए. बार ने इसे ‘प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन’ बताया और कहा ‘ऐसे कृत्य अन्यायपूर्ण हैं और न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं.’

इस्तीफे की मांग और इन-हाउस जांच की संभावना

जस्टिस वर्मा के बंगले से नकदी बरामदगी ने न्यायपालिका में सनसनी मचा दी है. कॉलेजियम के कुछ वरिष्ठ सदस्यों का मानना है कि सिर्फ ट्रांसफर इस मामले की गंभीरता को संबोधित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने जस्टिस वर्मा से स्वेच्छा से इस्तीफा देने का सुझाव दिया है. अगर वह इस्तीफा देने से इनकार करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट की 1999 की इन-हाउस प्रक्रिया के तहत जांच शुरू हो सकती है. इस प्रक्रिया में मुख्य न्यायाधीश पहले स्पष्टीकरण मांगते हैं. असंतोषजनक जवाब मिलने पर एक जांच पैनल बनाया जाता है जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट जज और दो हाई कोर्ट मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं. यह जांच महाभियोग की दिशा में पहला कदम हो सकती है.

जस्टिस वर्मा हो सकते हैं बर्खास्त

आपको बता दें कि किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ भ्रष्टाचार, अनियमितता या कदाचार की जांच के लिए 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस जांच प्रक्रिया तैयार की थी. इसके तहत, मुख्य न्यायधीश पहले संबंधित न्यायाधीश से स्पष्टीकरण लेंगे और उसके बाद जरूरत के मुताबिक एक इन हाउस समिति बनाकर जांच करा सकते हैं. जांच में जज के दोषी पाये जाने पर उनसे इस्तीफा मांगा जा सकता है. यदि वह इस्तीफा नहीं देते हैं तो महाभियोग चलाने के लिए सिफारिश की जा सकती है. महाभियोग संसद में चलता है.

जस्टिस यशवंत वर्मा का करियर

जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) और 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की. उनके करियर की शुरुआत इलाहाबाद हाई कोर्ट से हुई. जहां वे 2014 में जज बने. 2021 में उनका ट्रांसफर दिल्ली हाई कोर्ट में हुआ लेकिन अब यह घटना उन्हें वापस उनके मूल कोर्ट में ला रही है.

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