Bhojpuri : कौन है भोजीवुड के जनक? अंग्रेज़ों के लिए लड़ा था द्वितीय विश्व युद्ध

नई दिल्ली : नजीर हुसैन एक अच्छे लेखक, फिल्म निर्माता तो थे ही वह बड़े देश भक्त भी थे. उन्होंने देश की आज़ादी में भी बड़ी भूमिका निभाई थी. उन्हें भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का जनक कहा जाता है. उन्होंने अपने करियर में 50 से लेकर 70 के दशक तक करीब 500 फिल्मों में काम किया। […]

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Bhojpuri : कौन है भोजीवुड के जनक? अंग्रेज़ों के लिए लड़ा था द्वितीय विश्व युद्ध

Riya Kumari

  • September 27, 2022 8:37 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली : नजीर हुसैन एक अच्छे लेखक, फिल्म निर्माता तो थे ही वह बड़े देश भक्त भी थे. उन्होंने देश की आज़ादी में भी बड़ी भूमिका निभाई थी. उन्हें भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का जनक कहा जाता है. उन्होंने अपने करियर में 50 से लेकर 70 के दशक तक करीब 500 फिल्मों में काम किया। आइए जानते हैं कैसी उन्होंने भोजीवुड की शुरुआत की.

हिंदी सिनेमा से भोजीवुड के निर्माण तक

नजीर हुसैन के फिल्मी करियर की बात करें तो उन्होंने ज्यादातर संजीदगी भरे किरदार अदा किए थे. हिंदी सिनेमा में तो उनके प्रशंसक थे ही उन्होंने आज की फलती फूलती इंडस्ट्री की नींव भी रखी थी. ये और कोई नहीं बल्कि भोजपुरी सिनेमा था. भोजपुरी सिनेमा की शुरूआत का श्रेय नजीर हुसैन को खास तौर पर जाता है.ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने ही भोजपुरी में पहली फिल्म बनाई थी. भोजपुरी इंडस्ट्री की पहली फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ायबो’ थी. जिसने इस क्षेत्रीय सिनेमा की शुरुआत की.

बनाई कई फिल्में

इस फिल्म के बाद भी उन्होंने कई भोजपुरी भाषी फिल्में बनाई. हमार संसार, रुस गइलें सइयां हमार और बलम परदेसिया जैसी फिल्में इस लिस्ट में शामिल हैं जिसके निर्माण और निर्देशन उन्होंने ही किया था. इस तरह नजीर हुसैन भोजीवुड के पितामह कहलाए. लेकिन उनका जीवन केवल फिल्मों से ही घिरा हुआ नहीं था. बता दें, उन्होंने देश की सेवा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

आज़ाद हिंद फ़ौज का थे हिस्सा

दरअसल हुसैन के पिता साहबजादा रेलवे में काम करते थे. उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए नजीर भी फायर मैन की नौकरी ली. इसी बीच दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया जिसमें पूरी दुनिया शामिल हुई. इस दौरान उन्हें भी ब्रिटिश सेना में शामिल होना पड़ा. साल 1943 में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई तब नजीर उनकी फ़ौज में एनआईए के रैंकों में थे. इतना ही नहीं नजीर युद्ध के बाद एनआई के गिरफ्तार सिपाहियों में शामिल थे. इस तरह उन्होंने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी.

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