Dinesh lal yadav Nirahua Birthday: भोजपुरी अभिनेता से दिग्गज राजनेता बन चुके दिनेश लाल यादव निरहुआ (Dinesh lal yadav Nirahua) के लिए इतना ऊंचा मुकाम हासिल करना आसान नहीं था.
एक जमाने में इनके पिता 3700 रुपए महीने की कमाई से अपने पांच बच्चों का पेट पाल रहे थे. उस जमाने में परिवार का गुजारा भी बड़ी मुश्किल से हो पाता था. लेकिन होनहार बिरवन होत चीकने पात.
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. तब किसी ने सोचा भी न होगा कि उनके घर का एक छोटा सा बच्चा अपने घर परिवार का नाम पूरे देश में रोशन कर देगा.
आज दिनेश लाल यादव निरहुआ लगातार बुलंदियों को छूते हुए 43 साल के हो चुके हैं. तो आइये जान लेते हैं. इनकी अपार सफलता और फर्श से अर्श तक पहुंचने की पूरी कहानी.
दिनेश लाल यादव (Dinesh lal yadav) गाजीपुर जिले के एक छोटे से गांव टंडवा में पैदा हुए इन्होंने कोलकाता से ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है. कुल ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई में निरहुआ बीकॉम पास आउट हैं. गायिकी इनके परिवार से इन्हें विरासत में मिली. उन दिनों इनके परिवार के सभी लोग गाना गाया करते थे.
निरहुआ ने एक इंटरव्यू के दौरान अपने कड़े संघर्ष (Nirahua Struggle) के दिनों का जिक्र करते हुए कहा था, कि ‘जब वो कोलकाता से पढ़कर लौटे. तो उनके सामने सबसे कठिन सवाल था आखिर अब क्या? क्योंकि पेट पालने के लिए एक नौकरी की सख्त जरूरत थी. तब उन्हें उस वक्त लगा, कि उनके परिवार में एक चीज है, जो उनके घरवालों को धरोहर के रूप में मिली है. जिसका नाम गायकी है.
निरहुआ के पिता जी, बड़े पापा और उनके लड़के, विजय लाल यादव, सब बिरहा गाते थे और चाचा के लड़के प्यारे लाल यादव संगीत लिखने का काम करते थे. ऐसे नाजुक दौर में उन्हें करियर के तौर पर गायकी सबसे आसान लगी. संगीत के सारे उपकरण घर पर ही थे, कुछ बाहर से खरीदना नहीं था इसलिये उन्होंने बिना ज्यादा सोचे बिचारे सीधे गायकी की दुनिया में आने का मन बना लिया.
मुश्किल भरे हालात में निरहुआ ने बड़े भाई प्यारे लाल कवि जी के सामने बिरहा गाने की इच्छा जताई. दिनेश लाल यादव की इस बात पर वो राजी हो गए और यहीं से उनके करियर की शुरूवात हुई. लेकिन उनके बड़े भाई ने कहा कि ठीक है पढ़ाई भी करो और गाने भी गाओ. लेकिन इस दौरान निरहुआ को बड़े संघर्षों से गुजरना पड़ा उनकी मानें तो इन दिनों लोग उनसे ‘गाने भी गवा लेते थे औऱ बाद में पैसे भी नहीं देते थे. कभी-कभार तो पैसे न मिलने की वजह से इन्हें मीलों दूर पैदल ही चलकर घर आना पड़ता था.’
लोगों के इस तरह के व्यवहार को देखते हुए निरहुआ को लगने लगा कि यहां बहुत संघर्ष है और घर के हालात सही नहीं हैं. इस वजह से उन्हें इसे छोड़ देना चाहिए. इसके बारे में जब उन्होने अपने पिता को बताया. तो उन्होंने ऐसा करने से साफ मना किया और ढ़ांढ़स बंधाते हुए कहा कि लगे रहो. जितने लोग आज तुम्हें नजरअंदाज कर रहे हैं. यही सब एक दिन तुमसे मिलने के लिए तरसेंगे और मिल भी नहीं पाएंगे.
पिता जी की ये बात निरहुआ के दिमाग में घर कर गई. और उन्होने अपनी गायकी का सफर आगे भी जारी रखा. 2001 में उनके पिता का देहांत हुआ तब उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी. उस समय उनको लगा कि सारी जिम्मेदारी उन पर आ गई क्योंकि वो अपने परिवार में सबसे बड़े थे. इसके बाद दिनेशलाल यादव एलबम भी गाने लगे. जबकि इससे पहले वो स्टेज शो किया करते थे. उन्होंने अपना पहला एलबम ‘बुढ़वा में दम बा’. गाया था ‘उनका पहला ही एल्बम बुढ़वा में दम बा हिट हो गया. इस एल्बम की वजह से धीरे-धीरे लोग उन्हें जानने लगे.
आगे दिनेश लाल यादव ने बताया कि इसके बाद उनका एक और एलबम ‘निरहुआ नाम ह’ आया. इसके बाद 22 मार्च, 2003 को उनका एक और एलबम निरहुआ सटल रहे आया.
इसने तो निरहुआ को रातोंरात सुपर स्टार बना दिया. इसके बारे में दिनेशलाल यादव का कहना है. कि जिस कंपनी के लिए उन्होंने इसे गाया था उसने इसे लेने से साफ मना कर दिया.
इसको बनाने में उस समय उनके 20 हजार रुपए लगे थे. जब कंपनी ने इसे नहीं लिया तो वे बहुत मायूस हो गए और अन्दर तक टूट गए.अब उनका पैसा डूब जाएगा.
उस जमाने में बीस हजार रूपए बहुत हुआ करते थे. लेकिन किसे पता था कि उनका यही गाना आगे चलकर मील का पत्थर साबित होगा.
निरहुआ सटल होने के बाद निरहुआ ने टी-सीरीज कंपनी जाने का फैसला किया. वहां जाकर उन्होंने मालिक से मुलाकात कर अपना कैसेट दिखाया. लेकिन अपने पुराने गाने के एल्बम देने के लिये साफ मना कर दिया. बल्कि इसके बदले नए एलबम रिलीज करने की मांग रखी.
टी सीरीज के मालिक से मुलाकात के बाद करीब 3-4 महीने बीत गए. इस दौरान उनका नया एलबम भी रिलीज हो गया. लेकिन वो इस बात को भूल गए कि निरहुआ सटल लोगों के दिलों में पूरी तरह सेटल हो गया है. एक दिन वो अपने एक स्टेज शो में परफॉर्म करने के लिए पहुंचे तो वहां लोगों की खूब भीड़ दिखी. तब तक उन्हें इस बात का पता नहीं था कि ये लोग सिर्फ उन्हीं के लिए ही इकट्ठा हुए हैं. यहां उन्हें सारी-रात ‘निरहुआ सटल रहे’ गाना पड़ा. इसके बाद फिर अन्य कार्यक्रमों में भी लोगों की मांग पर रातभर उन्हें निरहुआ सटल ही सुनाना पड़ता था. और यहीं से दिनेशलाल यादव को लोगों ने निरहुआ कहना शुरू कर दिया.
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