धर्मों में स्नान को आखिर क्यों दिया गया है इतना महत्त्व?

नई दिल्ली. इंसान की त्वचा में लाखों रोम-कूप है जिनसे पसीना निकलता रहता है. इन रोम कूपों को जहां भरपूर ऑक्सीजन की जरूरत होती है वहीं उन्हें पौषक तत्व भी चाहिए, लेकिन हमारी त्वचा पर रोज धुल, गर्द, धुवें और पसीने से मिलकर जो मैल जमता है उससे हमारी त्वचा की सुंदरता और उसकी आभा […]

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धर्मों में स्नान को आखिर क्यों दिया गया है इतना महत्त्व?

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  • June 22, 2015 1:05 pm Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago

नई दिल्ली. इंसान की त्वचा में लाखों रोम-कूप है जिनसे पसीना निकलता रहता है. इन रोम कूपों को जहां भरपूर ऑक्सीजन की जरूरत होती है वहीं उन्हें पौषक तत्व भी चाहिए, लेकिन हमारी त्वचा पर रोज धुल, गर्द, धुवें और पसीने से मिलकर जो मैल जमता है उससे हमारी त्वचा की सुंदरता और उसकी आभा खत्म हो जाती है. त्वचा की सफाई का काम स्नान ही करता है. इंडिया न्यूज़ के विशेष कार्यक्रम भारत पर्व में आज पवन सिन्हा ने स्नान के महत्व पर ही प्रकाश डाला.  

गुरूजी ने बताया कि योग और आयुर्वेद में स्नान के प्रकार और फायदे बताए गए हैं. बहुद देर तक और अच्छे से स्नान करने से जहां थकान और तनाव घटता है वहीं यह मन को प्रसंन्न कर स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायी सिद्ध होता है. योगा स्नान कई तरीके से किया जाना है- सनबाथ, स्टीमबाथ, पंचकर्म और मिट्टी, उबटन, जल और धौती आदि से आंतरिक और बाहरी स्नान.

कैसे करें स्नान 
शारीरिक शुद्धता भी दो प्रकार की होती है- पहली में शरीर को बाहर से शुद्ध किया जाता है. इसमें मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान करने से त्वचा एवं अंगों की शुद्धि होती है. दूसरी शरीर के अंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए योग में कई उपाय बताए गए है- जैसे शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, कुंजल, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि. सामान्य तौर पर किए जाने वाले स्नान के दौरान शरीर को खूब मोटे तोलिए से हल्के हल्के रगड़कर स्नान करना चाहिए ताकि शरीर का मैल अच्छी तरह उत्तर जाए. स्नान के पश्चात सूखे कपड़े से शरीर पोंछे और धुले हुए कपड़े पहन लेने चाहिए। इस तरह से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है.

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