अन्न को शास्त्रों में प्राण की संज्ञा दी गई है. अन्न को प्राण कहने में न तो कोई अयुक्त है और न अत्युक्ति, निःसन्देह वह प्राण ही है. भोजन के तत्वों से ही शरीर में जीवनी शक्ति का निर्माण होता है. उसी से मांस, रक्त, मज्जा, अस्थि और ओजवीर्य आदि का निर्माण हुआ करता है. भोजन के अभाव में इन आवश्यक तत्वों का निर्माण रुक जाये तो शरीर शीघ्र ही स्वत्वहीन होकर स्तब्ध हो जाए.