विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र थे. वे अपने समय के वीर और ख्यातिप्राप्त राजाओं में गिने जाते थे. शाप के कारण त्रिशंकु चाण्डाल बन गये तथा उनके मन्त्री तथा दरबारी उनका साथ छोड़कर चले गये. फिर भी उन्होंने सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा का परित्याग नहीं किया. वे विश्वामित्र के पास जाकर बोले अपनी इच्छा को पूर्ण करने का अनुरोध किया.