नई दिल्ली: इंडिया न्यूज शो बेटियां में आज ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आपको किसी फिल्म के स्क्रिप्ट से कम नहीं लगेगी. जी हां आज हम बात करेंगे कल्पना सरोज के बारे में. कल्पना सरोज की कहानी एक ऐसे दलित पिछड़े समाज के लड़की की कहानी है जिसे जन्म से ही अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.समाज की उपेक्षा सहनी पड़ी, बाल-विवाह का आघात झेलना पड़ा, ससुराल वालों का अत्याचार सहना पड़ा, दो रुपये रोज की नौकरी करनी पड़ी और उन्होंने एक समय खुद को ख़त्म करने के लिए ज़हर तक पी लिया, लेकिन आज वही कल्पना सरोज 500 करोड़ के बिजनेस की मालकिन है.
कल्पना सरोज के बेहद inspiring life journey
आइये जानते हैं कल्पना सरोज के बेहद inspiring life journey के बारे में. सन 1961 में महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में कल्पना का जन्म हुआ. कल्पना के पिता एक पुलिस हवलदार थे और उनका वेतन मात्र 300 रूपये था जिसमे कल्पना के 2 भाई – 3 बहन , दादा-दादी, तथा चाचा जी के पूरे परिवार का खर्च चलता था. पुलिस हवलदार होने के नाते उनका पूरा परिवार पुलिस क्वार्टर में रहता था.कल्पना जी पास के ही सरकारी स्कूल में पढने जाती थीं, वे पढाई में होशियार थीं पर दलित होने के कारण यहाँ भी उन्हें शिक्षकों और सहपाठियों की उपेक्षा झेलनी पड़ती थी.
कम उम्र में विवाह:
कल्पना जी जिस society से हैं वहां लड़कियों को “ज़हर की पुड़िया” की संज्ञा दी जाती थी, इसीलिए लड़कियों की शादी जल्दी करके अपना बोझ कम करने का चलन था. जब कल्पना जी 12 साल की हुईं और सातवीं कक्षा में पढ़ रही थीं तभी समाज के दबाव में आकर उनके पिता ने उनकी पढाई छुडवा दी और उम्र में बड़े एक लड़के से शादी करवा दी. शादी के बाद वो मुंबई चली गयीं जहाँ यातनाए पहले से उनका इंतजार कर रहीं थीं.ये सब सहते-सहते कल्पना जी जी स्थिति इतनी बुरी हो चुकी थी कि जब 6 महीने बाद उनके पिता उनसे मिलने आये तो उनकी दशा देखकर उन्हें गाँव वापस लेकर चले गये.