नई दिल्ली: जब आप कोई गाड़ी या बाइक खरीदने जाते हैं तो इसमें आपके पास कलर्स के ढेरों ऑप्शन मिलते हैं. किसी को सफेद गाड़ी पसंद होती है तो किसी को लाल या फिर येलो. बहरहाल, जब टायर खरीदने की बारी आती है हमारे पास, ऐसा कोई ऑप्शन नहीं होता है. आपने भी जरूर गौर […]
नई दिल्ली: जब आप कोई गाड़ी या बाइक खरीदने जाते हैं तो इसमें आपके पास कलर्स के ढेरों ऑप्शन मिलते हैं. किसी को सफेद गाड़ी पसंद होती है तो किसी को लाल या फिर येलो. बहरहाल, जब टायर खरीदने की बारी आती है हमारे पास, ऐसा कोई ऑप्शन नहीं होता है. आपने भी जरूर गौर किया होगा कि टायर का साइज, कंपनी, या स्टाइल तो अलग हो सकता है, लेकिन उसका कलर हमेशा काला ही होता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि टायर हमेशा काले रंग के ही बनाए जाते हैं. Tyre किसी और रंग के क्यों नहीं बनाए जाते? आइए जानते हैं इस सवाल का जवाब:
ये बात शायद बहुत कम लोगों को ही पता होगी कि करीब 125 साल पहले टायर सफेद रंग के हुआ करते थे. दरअसल, इसके पीछे की वजह टायर बनाने में इस्तेमाल होने वाला रबर होता था, जो दूधिया सफेद रंग का होता है. लेकिन आजकल के समय में टायर बनाने के लिए एक खास तरह के दूसरे मैटिरियल का इस्तेमाल होता है. इतना ही नहीं, पुराने समय के टायर इतने मजबूत नहीं होते थे कि वह किसी गाड़ी का लोड संभाल पाएं और सड़क पर रफ़्तार से दौड़ पाएं.
ऐसे में गाड़ी की मजबूती को बढ़ाने के लिए एक स्ट्रॉन्ग यानी की मजबूत मटेरियल की जरूरत थी. जिसके बाद उसी दूधिया सफेद रंग की चीज में कार्बन ब्लैक मिलाने से बात बन गई. कार्बन ब्लैक की वजह से टायर की मजबूती में बेहद सुधार लाया जाता है. यही वजह है कि कार्बन ब्लैक मिलाने से गाड़ी का टायर पूरी तरह से काला हो जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, सादा रबर का टायर करीब 8 हजार किलोमीटर तय कर सकता है, वही कार्बन ब्लैक और रबर मिक्स का टायर 1 लाख किलोमीटर तक चल सकता है. ऐसे में मजबूती के लिहाज से ये काफी फायदेमंद है.