अर्धसत्य: गुजरात चुनाव के बहाने आजादी से आज तक की पूरी कहानी

इंडिया न्यूज के शो अर्धसत्य में गुजरात चुनाव के जरिए आजादी से अब तक की पूरी कहानी के बारे में बात की जाएगी. साथ ही पटेल समुदाय का गुजरात चुनाव की महत्ता पर प्रकाश डाला जाएगा. इसके अलावा पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की कहानी को समझना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि ये तो सब जानते हैं कि नेहरू और पटेल की बीच गहमागहमी रहती थी. ये टकराव तब शुरू हुआ जब देश आजाद होने जा रहा था तब यह माना गया था कि जो भी कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष होगा वही देश का प्रधानमंत्री बनेगा.

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अर्धसत्य: गुजरात चुनाव के बहाने आजादी से आज तक की पूरी कहानी

Aanchal Pandey

  • December 10, 2017 9:31 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली: इंडिया न्यूज के शो अर्धसत्य में गुजरात चुनाव के बहाने गुजरात की पूरी राजनीति और रणनीति पर प्रकाश डाला जाएगा. गुजरात चुनाव में बेशक पहले चरण की वोटिंग हो गयी हो. लेकिन गुजरात में हुआ राजनीतिक पार्टियों का हल्ले का परिणाम 18 दिसंबर को ही आएगा. गुजरात चुनाव में कई मुद्दों को खूब हल्ला मचाया गया लेकिन गुजरात राजनीति में पटेल समुदाय कहां खड़ा है. क्योंकि पटेल समुदाय का असल गुजरात परिणामों पर पड़ सकता है. क्योंकि माना जा रहा है कि पटेल समुदाय शायद बीजेपी से कहीं दूर होता जा रहा है. आज अर्धसत्य में गुजरात चुनाव के बहाने आजादी से आज तक की पूरी कहानी परबात की जाएगी.

पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की कहानी को समझना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि ये तो सब जानते हैं कि नेहरू और पटेल की बीच गहमागहमी रहती थी. ये टकराव तब शुरू हुआ जब देश आजाद होने जा रहा था तब यह माना गया था कि जो भी कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष होगा वही देश का प्रधानमंत्री बनेगा. इस रेस में तीन नाम सबसे आगे थे. जिनमें से पहला नाम था जवाहर लाल नेहरू, दूसरा सरदार पटेल और तीसरा नाम था आचार्य कृपलानी का.

29 अप्रैल 1946 को अध्यक्ष और देश के लिए वजीरेआजम चुनने के लिए अहम दिन था. उस समय देश में 15 कांग्रेस कमिटियां हुआ करती थीं. उस समय इन 15 में से 13 कांग्रेस कमेटी ने सरदार पटेल का नाम और 2 ने आचार्य कृपलानी का नाम चुना. लेकिन माना जाता है गांधी जी के कहने पर आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया था. लेकिन गांधी जी और कई अन्य लोगों का मानना था कि सरदार पटेल की तुलना में बहुलतावदी संस्कृति और देश को एकता के सूत्र में बांधे रखने के लिए उस समय जवाहर लाल नेहरू का नाम ज्यादा सटीक रहेगा.

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