नई दिल्ली: मोदी सरकार ने तीन साल पूरे कर लिये. देशभर में सरकार अपनी कामयाबियों का प्रचार कर रही है और ये बताने की कोशिश में है कि उसने कितना कमाल का काम किया है. अगर हम हर दावे, आंकड़े और सच की पड़ताल में लग जाएं तो काफी समय लग जाएगा.
इसलिए आज सिर्फ एक ही सवाल को लेकर आगे बढ़ेंगे कि पड़ोसी देश औऱ हमारी सबसे बड़ी परेशानी पाकिस्तान के साथ मोदी सरकार की नीति कैसी रही, हमने उस मुल्क को कितना सबक सिखाया, दुनिया के मंच पर कितना धकिआया, क्या कुछ गलतियां की और क्या पहले की सरकारों के मुकाबले मोदी सरकार ने पाकिस्तान को लेकर अपने रवैये में कोई बदलाव किया है? और आज हालात कहां खड़े हैं.
मोदी सरकार की कोशिशों का असर ये हुआ कि जो देश पाकिस्तान के दोस्त या फिर हिमायती हुआ करते थे, अब वे उससे किनार करने लगे हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति नवाज शरीफ के साथ मंच साझा करना नहीं चाहते. ब्रिटेन,फ्रांस के अलावा मुस्लिम देशों में भी पाकिस्तान की भद पिट रही है.
सऊदी अरब ने भी हाथ खींच लिये हैं. अब जरा सबसे मजेदार मामले पर आइए. 21 मई को सउदी अरब की राजधानी रियाद में हुए अमेरिकन-इस्लामिक समिट का है. यहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ तमाम मुस्लिम देशों के शासनाध्यक्ष आए थे.
यहां नवाज शरीफ की कोई पूछ नहीं हुई बल्कि वे बिना बुलाए बाराती की तरह ही बैठे रहे. आंतंकवाद से निपटने पर बुलाई गई इस बैठक में छोटे छोटे देशों को बोलने का मौका दिया गया लेकिन नवाज शरीफ को नहीं दिया गया. जबकि रास्ते में विमान में वो लगातार अपनी स्पीच का रिहर्सल करते रहे.
जख्म इतना ही नहीं मिला बल्कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने आतंकवाद से जूझ रहे देशों का अपने भाषण में जिक्र किया तो उन्होंने भारत का नाम लिया लेकिन पाकिस्तान का कहीं कोई जिक्र नहीं किया. इस मामले को लेकर पूरे पाकिस्तान के मीडिया और बुद्दिजीवियों में हाहाकार मच गया.
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