नई दिल्ली : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव यदि चारा घोटाले में न फंसे होते तो शायद आज भी राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अहम भूमिका होती. उन्होंने केन्द्रीय सरकारें बनाईं और उखाड़ीं, लेकिन कोई भी सरकार लालू को इस धोखाधड़ी से मुक्त नहीं करा सकी. हालांकि कहानी जनवरी 1997 में शुरू हुई जब […]
नई दिल्ली : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव यदि चारा घोटाले में न फंसे होते तो शायद आज भी राष्ट्रीय राजनीति में उनकी अहम भूमिका होती. उन्होंने केन्द्रीय सरकारें बनाईं और उखाड़ीं, लेकिन कोई भी सरकार लालू को इस धोखाधड़ी से मुक्त नहीं करा सकी. हालांकि कहानी जनवरी 1997 में शुरू हुई जब लालू पहली बार चारा घोटाले के सिलसिले में पूछताछ के लिए सीबीआई के सामने पेश हुए.
सीबीआई टीम का नेतृत्व यूनएन बिस्वास ने किया था. पत्रकार संकर्षण ठाकुर अपनी पुस्तक बंधु बिहारी में लिखते हैं कि विश्वास ने लालू को 6 घंटे से अधिक समय तक रोके रखा, मैंने 400 प्रश्न पूछे, और लालू जोड़तोड़ की बातें करते रहे. उन्होंने खुद को पिछड़े वर्ग का नेता साबित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा.
बता दें कि लालू ने बिश्वास से कहा- देखिए बिश्वास दा मैं बिहार के सबसे पिछड़े वर्ग से हूं और आप बंगाल के पिछड़े वर्ग से हैं क्यों ना हम दोनों मिलकर अगड़ों की इस साजिश को बेनकाब कर दें, हां, लूट हुई है, लेकिन जिसने भी इस खजाना को लूटा है, मुझे अंधेरे में रख कर किया है, मेरे साथ धोखा हुआ है, तो चलिए हम साथ में मिलकर अगड़ों को हरा दें. बता दें कि पूछताछ के बाद लालू ने चारा घोटाले को उन्हें सत्ता से बाहर करने की ब्राह्मणवादी साजिश बताया लेकिन बिश्वास पर इन बातों का कोई भी असर नहीं पड़ा. इसी घोटाले और पूछताछ को लेकर लालू की तब के पीएम एचडी देवगौड़ा से आए दिन तकरार हुआ करती थी. खास बात ये थी कि उस वक्त के सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह को देवगौड़ा ने ही नियुक्त किया था, और उन्होंने लालू की मदद नहीं की.
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