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Mahashivratri: जानें शिवपुराण कथा के द्वारा भगवान शिव की पूजा में शंख क्यों है वर्जित

नई दिल्ली: सनातन धर्म में शंख का समस्त वैदिक साहित्य में विशेष स्थान है. भारतीय संस्कृति में शंख को एक शुभ प्रतीक माना जाता है और ये सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाली लाता है. बता दें कि शंख भगवान विष्णु का प्रमुख हथियार है. शंख की ध्वनि आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न है, और शास्त्रों के मुताबिक […]

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Mahashivratri: जानें शिवपुराण कथा के द्वारा भगवान शिव की पूजा में शंख क्यों है वर्जित
  • March 7, 2024 10:26 am Asia/KolkataIST, Updated 9 months ago

नई दिल्ली: सनातन धर्म में शंख का समस्त वैदिक साहित्य में विशेष स्थान है. भारतीय संस्कृति में शंख को एक शुभ प्रतीक माना जाता है और ये सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाली लाता है. बता दें कि शंख भगवान विष्णु का प्रमुख हथियार है. शंख की ध्वनि आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न है, Shankh : हिंदू धर्म में शंख का क्या है महत्व, जानें सब कुछ जो आप जानना  चाहते हैं...और शास्त्रों के मुताबिक शंख का निर्माण शंख की हड्डियों और चूर्ण से हुआ था और इसलिए इसे पवित्र चीजों में सबसे पवित्र और सभी शुभ चीजों में सबसे शुभ माना जाता है. जिस प्रकार भगवान विष्णु को शंख अत्यंत प्रिय है और शंख से जल अर्पित करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं,शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख से भगवान विष्णु पर जल चढ़ाकर पीले चन्दन का  तिलक करें news in hindi उसी प्रकार भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग वर्जित माना गया है. इसी कारण से शिव की पूजा के दौरान महादेव को ना तो शंख से जल चढ़ाया जाता है और ना ही उसमें पाइप डाला जाता है. तो आइए हम इसके पीछे की पौराणिक कथा जाने…..

शिवपुराण रोचक कथा

शिवपुरम इतिहास के अनुसार दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी, और उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की, हालांकि राजा देव की घोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा देव से उन्हें वरदान देने का अनुरोध किया, तब उस महापराक्रमी ने एक पराक्रमी पुत्र की याचना की. फिर भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा और अन्तर्धान हो गये.Sawan 2022: शिव जी को शंख से जल क्यों नहीं चढ़ाते हैं | Boldsky *Religious  - video Dailymotionइसके बाद दंभ को शंखचूड़ नामक पुत्र हुआ, इसके दौरान भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और राक्षस राजा से श्रीकृष्ण का कवच दान में ले लिया, और शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी की विनम्रता धारण की, इसके बाद भगवान शिव ने विजय नामक त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया. बता दें कि शंखचूड़ की हड्डियों से शंख निकलता है, जिसका जल शंकर को छोड़कर सभी देवताओं के लिए शुभ माना जाता है.Tulsi Is Prohibited In Lord Ganesha's Worship And Shankh Water To Shiv  Shankar - Amar Ujala Hindi News Live - गणेश जी को तुलसी तो शिव जी को शंख से  नहीं चढ़ाते

ब्रह्माजी ने शंखचूड़ को दिया श्रीकृष्ण कवच

जब शंखचूड़ युवावस्था में पहुंचा, तो उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में कठोर तपस्या की, और उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रह्मदेव ने वरदान मांगने को कहा तो शंखचूड़ ने देवताओं के लिए अजेय होने का वरदान मांगा. भगवान ब्रह्मा ने “तथास्तु” कहा और उन्हें श्री कृष्ण का कवच दिया, Sawan Somvar 2022 Sawan Lord Shiva Puja Vidhi And Mantra- Sawan Somvar  2022: सावन में कैसे करें शिव जी की पूजा पढ़ें मंत्रों से लेकर पूजन तक का  तरीकाजो तीनों लोकों में खुशी लाता है. हालांकि इसके बाद ब्रह्माजी शंखचूड़ के पश्चाताप से संतुष्ट हुए और उसे धर्मध्वजी की पुत्री तुलसी से विवाह करने का आदेश दिया. बता दें कि ब्रह्मा जी की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हुआ है.

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