नई दिल्ली। PV Narasimha Rao Bharat Ratna: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने की घोषणा की है। नरसिम्हा राव देश के नौंवे प्रधानमंत्री थे। बता दें कि साल 1991 में राजिव गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस कमजोर पड़ने लगी थी। उस समय लोकसभा […]
नई दिल्ली। PV Narasimha Rao Bharat Ratna: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पूर्व पीएम नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने की घोषणा की है। नरसिम्हा राव देश के नौंवे प्रधानमंत्री थे। बता दें कि साल 1991 में राजिव गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस कमजोर पड़ने लगी थी। उस समय लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को 545 में से 232 सीटें ही मिलीं। लेकिन ये बहुमत के जादुई आंकड़े से कम थीं। हालांकि, राव ने पीएम रहते हुए 5 साल तक सरकार चलाकर दिखाई।
पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखा है कि नरसिम्हा राव ने हेमशा इस बात का यह ध्यान रखा था उनके कार्यकाल के दौरान मिसेज गांधी पार्टी से दूर रहें, जिससे वो स्वतंत्र होकर सत्ता चला सकें। सोनिया ऐसे मौके की तलाश में थी कि कोई अवसर ऐसा आए जब वो स्वतः ही पार्टी की अध्यक्ष बन जाएं और राव का कार्यकाल पूरा होने के बाद ऐसा ही हुआ।
नरसिम्हा राव जैसे ही PM पद से हटे, कांग्रेस ने उनसे दूरियां बनाना शुरू कर दीं। इसका सबसे बड़ा नमूना तब देखा गया, जब मौत के बाद भी राव का शव कांग्रेस दफ्तर के बाहर पड़ा रहा। 23 दिसंबर, 2004 को पीवी नरसिम्हा राव का 83 साल की उम्र में निधन हुआ था। उस समय तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकरा से कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाना चाहिए। बता दें कि वो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। लेकिन परिवार का कहना था कि उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में ही होगा।
आमतौर पर जब किसी भी पार्टी का कोई बड़ा नेता दुनिया छोड़कर जाता है, तो उसका शव पार्टी दफ्तर में रखा जाता है। राव के परिवार को भी यही लगा कि राव के शव को भी सम्मान सहित 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस दफ्तर में रखा जाएगा। उनके शव को यहां ले जाया गया। लेकिन कांग्रेस दफ्तर के दरवाजे बंद थे। कांग्रेस के सारे नेता वहां चुपचाप खड़े रहे, किसी ने दरवाजा खुलवाने के लिए नहीं कहा और फिर सोनिया आईं, उन्होंने राव को वहीं पर श्रद्धांजलि दे दी।
विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘द हाफ लायन’ में इस वाकये का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब राव के करीबी दोस्त ने कांग्रेस के एक नेता से दफ्तर का गेट खुलवाने के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि ‘गेट नहीं खुलता है’। सीतापति ने किताब में बताया कि राव के बेटे प्रभाकरा का मानना था कि हमें महसूस हुआ कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी नहीं चाहती थीं कि अंतिम संस्कार दिल्ली में हो।