नई दिल्ली: जीवन में उतार-चढ़ाव आना बिल्कुल स्वाभाविक होता है। चाहे वो करियर, पढ़ाई या रिश्तों से जुड़ा हो। लेकिन सबसे सर्वश्रेण्ठ ये है कि हम इन चुनौतियों और मुश्किलों से कितनी अच्छी तरह निपट पाते हैं और रिजेक्शन जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा होता है। वहीं बच्चों को इससे निपटने का सही तरीका सिखाना […]
नई दिल्ली: जीवन में उतार-चढ़ाव आना बिल्कुल स्वाभाविक होता है। चाहे वो करियर, पढ़ाई या रिश्तों से जुड़ा हो। लेकिन सबसे सर्वश्रेण्ठ ये है कि हम इन चुनौतियों और मुश्किलों से कितनी अच्छी तरह निपट पाते हैं और रिजेक्शन जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा होता है। वहीं बच्चों को इससे निपटने का सही तरीका सिखाना शिक्षकों और माता-पिता की जिम्मेदारी होती है। जिससे उन्हें आत्मविश्वास बनाए रखने, सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है। चलिए अब जानते हैं बच्चों को कैसे रिजेक्शन(Rejection) से डील करना सिखाएं।
अगर हम सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं तो रिजेक्शन से निपटना आसान हो जाता है। बच्चों को समझाते रहें कि रिजेक्शन जीवन का एक सामान्य हिस्सा है और इसे कमजोरी या खुद को नीचा दिखाने वाली बात नहीं समझना चाहिए। दरअसल, इसे एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है जो कि हमें आगे बढ़ने और सीखने के लिए प्रेरित करता है।
इस दौरान बच्चों को समझाएं कि रिजेक्शन तो हर किसी के साथ कभी न कभी हो ही जाता है और यह व्यक्तिगत असफलता नहीं है। बच्चों से उनकी भावनाओं के बारे में खुलकर बात करें। जानकारी दे दें कि रिजेक्शन जैसी स्थितियों में बच्चे अक्सर अपने आप को दोष देते हैं और सोचते हैं कि शायद मेरे ही अंदर कोई कमी।
अक्सर माता-पिता को बच्चों के सामने उनकी सकारात्मक बातों को रखना चाहिए। जैसे कि बच्चों को याद दिलाना चाहिए कि वह पिछली बार परीक्षा में कितने अच्छे नंबर लाएं थे या फिर कल क्रिकेट मैच में उसने कितनी अच्छी बल्लेबाजी की थी। इस तरह हमेशा बच्चों को याद दिलाना चाहिए कि एक रिजेक्शन उनकी सारी क्षमताओं को दर्शाता नहीं है और वे बहुत कुछ कर सकते हैं।
माता-पिता अपने बच्चों से अक्सर सफल लोगों की कहानियां साझा करें, जो कि रिजेक्शन का सामना कर के ऊपर उठे हैं। इससे बच्चे प्रेरित होंगे और उन्हें ये भी दिखेगा कि असफलता से सीखना और आगे बढ़ना संभव है।
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