नई दिल्ली। अयोध्या के भव्य राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला के श्री विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन होना है। इस अवसर को देशभर में त्योहार के रूप में मनाया जाएगा। वैसे तो देशभर में और भी कई मंदिर हैं जो किसी न किसी खास वजह से प्रसिद्ध हैं। लेकिन आज हम […]
नई दिल्ली। अयोध्या के भव्य राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला के श्री विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन होना है। इस अवसर को देशभर में त्योहार के रूप में मनाया जाएगा। वैसे तो देशभर में और भी कई मंदिर हैं जो किसी न किसी खास वजह से प्रसिद्ध हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के पुजारी को मासिक अवकाश यानी की पीरियड्स लीव मिलती है। दरअसल, ये छुट्टियां उन्हें किसी और की तरफ से नहीं बल्कि, सीधा जुगल की ओर से मिलती है। जुगल अर्थात भगवान राम और माता सीता (Jugal Madhuri Kunj Mandir)। आइए जानते हैं अयोध्या के इस अनोखे मंदिर के बारे में।
यहां हम जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं, वह मंदिर है जुगल माधुरी कुंज मंदिर। यह मंदिर अयोध्या के रामकोट में स्थित है। दरअसल, यह मंदिर गृहस्थ गद्दी में आता है यानी यहां महंत को गृहस्थी बसाने की अनुमति है। इस मंदिर के सामने के इलाके को नजरबाग कहते हैं। ‘नजरबाग’ नाम को लेकर बताया जाता है कि अयोध्या नरेश ने यह जमीन हनुमानगढ़ी के नाम नजर यानी दान दे दी थी। इस मंदिर में जुगल (भगवान राम और माता सीता) के दर्शन के लिए लगभग दो दर्जन सीढ़ियां बनी हुई हैं।
यहां जुगल माधुरी कुंज मंदिर (Jugal Madhuri Kunj Mandir) के पुजारी राज बहादुर हैं। जिनकी दिनचर्या सुबह 5 बजे से शुरू होती है और भगवान के शयन के बाद ही खत्म होती है। मंदिर के पुजारी राज बहादुर यहां पर अष्टयाम सेवा यानी आठ प्रहरों के शृंगार, भोग, आरती करते हैं। जानकारी के अनुसार, पूरे दिन जुगल की सेवा में लगे रहने के बाद, महीने के कुछ दिन ऐसे भी होते हैं, जब मंदिर के पुजारी को इन सारी जिम्मेदारियों से छूट मिलती है। ये छुट्टियां उन्हें, सीधे तौर पर जुगल की ओर से मिलती हैं। ऐसे में महीने में तीन से पांच दिनों की जो छुट्टियां राज बहादुर को मिलती हैं, उसे मासिक अवकाश यानी पीरियड्स लीव कहते हैं।
यह माना जाता है कि जुगल माधुरी कुंज मंदिर (Jugal Madhuri Kunj Mandir), सखी परंपरा का है। ऐसे में जब माता सीता की सखियां साथ नहीं होतीं तो महंत को ही सखी भाव में आना पड़ता है। उस वक्त मंदिर के पुजारी के सिर पर दुपट्टा और माथे पर चंदन सजा होता है। कई बार तो कुछ विशेष त्योहारों पर पुजारी को सखी बनकर जुगल के सामने नृत्य भी करना होता है। वर्तमान में जो जुगल माधुरी कुंज मंदिर बना हुआ है उसका निर्माण साल 1898 में भीखमपुर रियासत की महारानी द्वारा करवाया गया था। बताया जाता है कि लखनऊ-सीतापुर रोड पर एक छोटी-सी रियासत पड़ती है, भीखमपुर। इसी रियासत की रानी साहिबा इस मंदिर के पहले महंत मैथिलीशरण भक्त मालीजी महाराज की भक्त थीं। उससे पहले भी यह मंदिर था, लेकिन सही अवस्था में नहीं था। अब इसी परंपरा में तीसरे महंत, पुजारी राज बहादुर हैं।
जुगल माधुरी कुंज मंदिर(Jugal Madhuri Kunj Mandir) की परंपरा, थोड़ी बहुत बदरीनाथ मंदिर के रावल जैसी है। जिन्हें मंदिर के कपाट खुलते और बंद होते समय लक्ष्मीजी के विग्रह को छूने के लिए स्त्री वेश धारण करना होता है। हालांकि, रावल को उस परंपरा के निर्वाह के लिए स्त्री बनना पड़ता है, जिसके तहत कोई पराया पुरुष किसी स्त्री को छू नहीं सकता।
जुगल माधुरी कुंज मंदिर (Jugal Madhuri Kunj Mandir) के संबंध में यह मान्यता है कि विवाह के बाद जब सीताजी अयोध्या आईं, तो उनके साथ उनकी आठ सखियां भी थीं। उन सखियों के नाम थे – चंद्रकला, प्रसाद, विमला, मदन कला, विश्व मोहिनी, उर्मिला, चंपाकला और रूपकला। कहा जाता है कि इस मंदिर में श्रीराम-सीता के साथ ये आठों सखियां भी विराजमान हैं। हालांकि, माता सीता की सखियां हर वक्त जुगल के साथ मौजूद नहीं होतीं। सखियों का दरबार राम विवाह, रामनवमी और सावन पर लगता है। इसके अलावा वो शयन कुंज में विश्राम करती हैं। जुगल माधुरी कुंज मंदिर के पुजारी जिस अनोखी सखी परंपरा को निभाते हैं, तब वह इसी विश्राम के समय की होती हैं।
मौत के निकट होने पर शरीर में ऐसे दिखे हैं बदलाव, जानें मृत्यु के संकेत