नई दिल्लीः आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर सुनवाई अब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ करेंगे। बता दें कि इस मामले की सुनवाई कर रहे दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसले दिए। जिसके बाद मामले को मु्ख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया। याचिका में पूर्व सीएम नायडू ने स्किल डेवलेपमेंट […]
नई दिल्लीः आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर सुनवाई अब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ करेंगे। बता दें कि इस मामले की सुनवाई कर रहे दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसले दिए। जिसके बाद मामले को मु्ख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया। याचिका में पूर्व सीएम नायडू ने स्किल डेवलेपमेंट घोटाले में उनके खिलाफ एफआईआर केस को रद्द करने की मांग की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बेला त्रिवेदी और अनिरुद्ध बोस ने फैसला सुरक्षित रख लिया था लेकिन फैसले सुनाने के बाद दोनों जजों में मतभेद दिखा। जिसके बाद मामले को सीजेआई के पास भेज दिया गया।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के लागू होने को लेकर मतभेद हो गया। इस धारा के तहत तफ्तीश शुरू करने से पहले मंजूरी लेने का प्रावधान है। जस्टिस अनिरुद्ध बोस का कहना है कि तेदेपा चीफ चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मंजूरी ली जानी चाहिए थी। वहीं जस्टिस बेला त्रिवेदी का कहना है कि इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए लागू नहीं होती है। ऐसे में उन्होंने चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया।
बता दें कि साल 2016 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू ने राज्य के बेरोजगार युवाओं को स्किल ट्रेनिंग देने के लिए आंध्र प्रदेश स्टेट स्किल डेवलेपमेंट कॉर्पोरेशन की शुरुआत की थी। 3,300 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट के लिए तत्कालीन राज्य सरकार ने सीमेंस इंडस्ट्री सॉफ्टवेयर इंडिया लिमिटेड और डिजाइन टेक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के साथ करार किया था। इस योजना के तहत सीमेंस ने राज्य में छह एक्सिलेंस सेंटर स्थापित किए थे। आरोप है कि मुख्यमंत्री रहते हुए चंद्रबाबू नायडू ने फंड का दुरुपयोग किया था, जिससे सरकारी खजाने को 371 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।
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