नई दिल्लीः एक तरफ प्रदूषण अनियंत्रित हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ देश के कमोबेश सभी प्रदेशों और केंद्रित शासित राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बने बोर्ड और कमेटियों में 50 फीसदी से अधिक पद खाली पड़े हैं। प्रदूषण की जांच के लिए बनीं प्रयोगशालाएं भी मानकों को पूरा नहीं करतीं। दो तिहाई से […]
नई दिल्लीः एक तरफ प्रदूषण अनियंत्रित हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ देश के कमोबेश सभी प्रदेशों और केंद्रित शासित राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बने बोर्ड और कमेटियों में 50 फीसदी से अधिक पद खाली पड़े हैं। प्रदूषण की जांच के लिए बनीं प्रयोगशालाएं भी मानकों को पूरा नहीं करतीं। दो तिहाई से अधिक लैब को सक्षम एजेंसियों से प्रमाणित तक नहीं कराया गया है।
प्रदूषण नियंत्रण की खराब हालत पर अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलावा यूपी, पंजाब, दिल्ली सहित 36 प्रदेश और केंद्र शासित राज्यों को नोटिस जारी किया गया है। सभी राज्य सरकारों से ट्रिब्यूनल ने प्रशासनिक और तकनीकी पदों के अलावा प्रयोगशालाओं में मौजूद संसाधनों पर जवाब देने के लिए आदेश दिया है। चेयरमैन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, विशेषज्ञ सदस्य डाॅ. ए सेंथिल वेल की ओर से दिए गए आदेश में कहा गया है कि राज्य सरकार अपनी रिपोर्ट में जवाब दे कि संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अथवा कमेटी और उनकी लैब में स्वीकृत स्टाफ और तैनाती के अलावा क्या संसाधन उनके पास उपलब्ध हैं।
एनजीटी का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिम्मेदार बोर्ड और कमेटियों में 11969 मान्य पद हैं। इनमें से केवल 5877 पद पर ही तैनाती है। 6092 पद खाली पड़े हुए हैं। यूपी, गुजरात, बिहार, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, नागालैंड, सिक्किम जैसे राज्यों में तो 50 फीसदी से भी कम पर स्टाफतैनात है। लैब में भी 194 में केवल 12 को ईपीए और 41 को एनएबीएल से प्रमाणित हैं। यानी, 141 लैब एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट के अनुसार नहीं संचालित किए जा रहे हैं। कुछ राज्यों में तो कोई लैब ही उपलब्ध नहीं है।
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