नई दिल्लीः बिहार समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में इस वक्त ‘छठ’ की छटा देखने को मिल रही है। आज इस पर्व का दूसरा दिन है जिसे की ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन लोग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़, चावल की खीर और गेंहू के […]
नई दिल्लीः बिहार समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में इस वक्त ‘छठ’ की छटा देखने को मिल रही है। आज इस पर्व का दूसरा दिन है जिसे की ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन लोग सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक व्रत रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़, चावल की खीर और गेंहू के आटे की रोटी खाकर व्रत तोड़ते हैं और इसी प्रसाद को धारण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है जो कि उषा काल में सूर्य को अर्ध्य देने के बाद ही खत्म होता है।आस्था, त्याग और प्रेम का ये पर्व का केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि ये वैज्ञानिक महत्व भी रखता है। ये उपवास इंसान को प्रकृति के निकट लेकर जाता है और उसका महत्व समझाता है। इस व्रत में इस्तेमाल होने वाली हर एक चीज नेचुरल है जो कि इंसान के तन-मन को शुद्द, शांत और स्वस्थ रखती है।
इस व्रत में साफ-सफाई का बेहद ख्याल रखा जाता है। इस दौरान लोग ना केवल खुद को स्वच्छ रखते हैं बल्कि इस दौरान घाटों की भी सफाई होती है जो कि काफी जरूरी है। इस पर्व की वजह से इंसान अपने आस-पास के स्थान, पानी, जलाशयों, तालाबों या नदियों की सफाई करता है।
यही नहीं ये अकेली ऐसी पूजा है जिसमें डूबते और उगते दोनों सूरज की पूजा की जाती है। दरअसल हमारे देश में छठ दो बार मनाया जाता है। पहला ‘चैत्र मास का छठ’ और दूसरा ‘कार्तिक मास का छठ’। अगर आप गौर फरमाएंगे तो कार्तिक और चैत्र दोनों में ही मौसम में काफी बदलाव होता है।
चैत्र में जहां सर्दी खत्म होकर गर्मी की शुरु हो जाती है वहीं दूसरी कार्तिक मास में गर्मी खत्म होकर सर्दी आरंभ होती है। मौसम परिवर्तन के दौरान इंसान सर्दी, जुकाम जैसी बीमारियों का शिकार होता है ऐसे में सूर्य की किरणें इंसान की इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करती हैं। सूरज की किरणों में ‘विटामिन डी’ पाया जाता है, जो कि इंसान की हड्डियों की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है। यहीं नहीं इंसान के अंदर रंगों के परिवर्तन की वजह से त्वचा के कई भयंकर रोग भी हो जाते हैं लेकिन सूरज की किरणें त्वचा संबंधित रोगों के इलाज में सहायता करती है।
कार्तिक माह में महीलाओं और पुरुषों में प्रजनन शक्ति बढ़ती है और गर्भवती माताओं को विटामिन-डी नितांत आवश्यक है। विज्ञान के अनुसार सबसे ज्यादा विटामिन डी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मिलता है।
प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी का चूल्हे और आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है बता दें इस व्रत में लौकी और भात का सेवन किया जाता है, उपवास करने वालों को ज्यादा हैवी खाना नहीं खाना चाहिए इसलिए ये प्रसाद सेहत के लिए लाभदायक होता है। जो भी प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है उसमें कैल्शियम की मात्रा बहुत होती है तो वहीं अदरक और गुड़ खाकर उपवास तोड़ा जाता है क्योंकि निर्जला व्रत रखने के बाद शरीर काफी कमजोर होने लगता है, ऐसे में अदरक और गुड़ शरीर को ऊर्जा और ग्लूकोज देते हैं।