नई दिल्ली: चरणबद्ध तरीके से ई-एफआईआर का रजिस्ट्रेशन शुरू करने की लॉ कमीशन ने सिफारिश की है। अपनी सिफारिश में लॉ कमिशन ने कहा है कि इसकी शुरुआत तीन साल तक की जेल वाले अपराधों से की जा सकती है। लॉ कमिशन ने इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में ई-एफआईआर […]
नई दिल्ली: चरणबद्ध तरीके से ई-एफआईआर का रजिस्ट्रेशन शुरू करने की लॉ कमीशन ने सिफारिश की है। अपनी सिफारिश में लॉ कमिशन ने कहा है कि इसकी शुरुआत तीन साल तक की जेल वाले अपराधों से की जा सकती है। लॉ कमिशन ने इस सप्ताह की शुरुआत में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में ई-एफआईआर के रजिस्ट्रेशन की सुविधा के लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल बनाने का भी सुझाव दिया है। शुक्रवार को यह रिपोर्ट सार्वजनिक की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-एफआईआर से एफआईआर के पंजीकरण में देरी की समस्या से भी निपटा जा सकता है और नागरिक रियल टाइम में अपराध की सूचना दे पाएंगे।
लॉ कमिशन के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने पत्र में कहा कि टेक्नोलॉजी के विकास के कारण संचार के साधनों में बहुत विकास हुआ है। ऐसी स्थिति में एफआईआर दर्ज करने के पुराने तरीके पर ही टिके रहना आपराधिक सुधारों के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं। रिपोर्ट में शिकायत या ई-एफआईआर दर्ज कराने वाले व्यक्ति का ई-वेरिफिकेशन और अनिवार्य घोषणा का भी सुझाव दिया गया, ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके।
एफआईआर के ऑनलाइन पंजीकरण को एनेबल करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 में संशोधन रिपोर्ट में बताया गया है कि ई-एफआईआर रजिस्ट्रेशन में देरी के कारण लंबे समय से चल रहे मुद्दे से निपटेंगे और नागरिक रियल टाइम अपराधों की रिपोर्ट कर सकेंगे।
आयोग ने बताया कि इससे पुलिस पर अत्यधिक जांच का बोझ पड़ सकता है. आयोग ने कहा कि जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 155 के अनुसार सभी गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए ई-शिकायत के पंजीकरण की इजाजत दी जानी चाहिए।